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टिक-टिक करती घड़ी की सुई और आने वाली मंदी का खौफनाक मंजर, क्या भारत खुद को बचा पाएगा?

ये साल भी अब खत्म होने वाला है। 2022 इतिहास के पन्नों पर कुछ अच्छे तो कुछ बूरे बातों को लेकर हमेशा याद किया जाएगा, लेकिन नया साल देश और दुनिया में खुशियों की जगह कितना गम लाने जा रहा है, क्या इसके बारे में आपने कभी अंदाजा लगाया है? यहां पढ़िए डिटेल स्टोरी।

Written By: Vikash Tiwary @ivikashtiwary
Updated on: December 23, 2022 7:22 IST
Recession in india- India TV Paisa
Photo:INDIA TV इन खतरों का भारत पर कितना पड़ेगा असर?

साल खत्म होने के साथ लोगों की कई इच्छाएं अधूरी रह जाती है, जिसको लेकर नए साल पर उन्हें कुछ उम्मीद भी होती है कि अगर इस साल नहीं हुआ तो अगले साल कर लेंगे। इन सबके लिए अगर आप एक नौकरी पेशा या बिजनेस मैन हैं तो नौकरी और व्यापार का बचा रहना बेहद जरूरी होता है। ऐसे में अगर इसपर ही खतरा आ जाए तो क्या आप अपनी उन ख्वाहिशों को पूरा कर पाएंगे जो किसी कारणवश पूरी नहीं हो पाई थी। आईएमफ ने 2023 की शुरुआत में ही पूरी दुनिया में मंदी आने की चेतावनी दी है। 

यूक्रेन पर रूस के हमले ने पैदा किए ऐसे हालात

2022 की शुरुआत में वैश्विक अर्थव्यवस्था महामारी से उबर रही थी। उसी बीच यूक्रेन पर रूस ने हमला कर दिया और कमोडिटी की कीमतें नई ऊंचाई पर पहुंच गईं, जिससे और भू-राजनीतिक तनाव पैदा हो गया। कोरोना की मार से परेशान चीन के कड़े लॉकडाउन और जीरो-कोविड पॉलिसी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को और प्रभावित किया। रूस पर प्रतिबंध लगाने वाले राष्ट्रों ने वैश्विक विकास दृष्टिकोण को खराब कर दिया था। यूरोप के कई देश इन दोनों देशों के बीच चल रहे युद्ध के चलते काफी प्रभावित हुए हैं।

विश्व बैंक (World Bank) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मौद्रिक नीति के कड़े होने के बीच दुनिया को 2023 में मंदी का सामना करना पड़ सकता है। वित्तीय संस्थान ने महंगाई को कम करने के लिए उत्पादन बढ़ाने और आपूर्ति बाधाओं को दूर करने का भी आह्वान किया है।

अमेरिका में मंदी से भारत को फायदा

अगर अमेरिका में मंदी आती है तो इसका सीधा फायदा उन देशों को मिलेगा जो अमेरिका से समान खरीदते हैं, क्योंकि जब मंदी किसी देश में आती है तो मांग कम हो जाती है और कंपनियां प्रोडक्ट के दाम में कमी करती हैं। तो जो देश वहां से समान खरीदता है उसे सस्ते में समान मिल जाता है। भारत अमेरिका समते कई देशों से कच्चे तेल खरीदता है। महंगाई आने से कच्चे तेल की कीमतों में और गिरावट आएगी। सिटीबैंक ने ब्रेंट क्रूड की कीमतों में लगभग 60 डॉलर की कमी आने का अनुमान लगाया है। अगर अमेरिका 2022 के अंत तक मंदी की चपेट में आ जाता है। क्रूड ऑयल सस्ता होने से भारत में बढ़ रही महंगाई को कम करने में मदद मिलेगी।

डॉलर की मजबूती या रुपये की गिरावट

भारत के सामने इस समय सबसे बड़ी समस्या डॉलर की मजबूती या रुपये में आई गिरावट है। आप इसे सिक्के के दो पहलू कह सकते हैं। मंदी की मार झेल रहा अमेरिका अपनी इकोनॉमी को जितना मजबूत बनाएगा, डॉलर पर निर्भर अर्थव्यवस्थाएं लुढ़कती ही जाएंगी। रुपये की कीमत में गिरावट का एक कारण डॉलर की मजबूती भी है, जो भारत ही नहीं कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की कमर तोड़ रही है। पाकिस्तान में 1 डॉलर 200 के पार है तो नेपाल में विनिमय दर 400 के पार चली गई है। डॉलर महंगा होने से देश में आयात होने वाला सब सामान महंगा हो जाता है। 2014 से लेकर अब 25 प्रतिशत तक टूट चुका है। वहीं सिर्फ एक साल में ही रुपया 74 से 80 तक लुढ़क चुका है। 

रुपये में हो सकेगा कारोबार

भारतीय इक्विटी बाजार वैश्विक रुझान से अलग हो रहे हैं। भारत तेल के झटके की चपेट में है क्योंकि यह अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का तीन-चौथाई से अधिक आयात करता है। हालांकि, देश के साथ अपने स्वस्थ संबंधों के कारण रूस के साथ एक समझौता करने में सक्षम था। इसने उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में महंगाई को कम करने में मदद करने के लिए रूस से अतिरिक्त मात्रा में तेल का उचित मूल्य पर आयात करना शुरू कर दिया। हाल ही में एक खबर आई कि भारत रूस से इंडियन रूपये में तेल की खरीद करेगा। जो कि काफी राहत की खबर है। इससे तेल के चलते भारत की डॉलर पर निर्भरता कम होगी। यूएस और भारत की डॉलर इंडेक्स के लिए ब्याज दरें अगले साल चरम पर पहुंचने की उम्मीद है। इसके साथ ही, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मंदी से एफआईआई का पैसा भारत में आने के बजाय अमेरिका की ओर बढ़ेगा।

इन देशों की तुलना में तेज विकास करेगा भारत

निर्यात और घरेलू मांग में वृद्धि के नरम होने के कारण वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि धीमी होकर 5.7 प्रतिशत रह जाएगी। हालांकि, यह तब भी चीन और सऊदी अरब समेत कई अन्य जी20 अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2022-23 में 6.6 प्रतिशत की दर से बढ़ने के बाद अर्थव्यवस्था आने वाली तिमाहियों में धीमी हो जायेगी और 2023-24 में यह 5.7 प्रतिशत तथा 2024-25 में सात प्रतिशत पर पहुंचेगी।

बाजार में नगदी पर्याप्त

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से पखवाड़े के आधार पर 4 नवंबर को जारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल 21 अक्टूबर तक जनता के बीच चलन में मौजूद मुद्रा का स्तर बढ़कर 30.88 लाख करोड़ रुपये हो गया। यह आंकड़ा चार नवंबर 2016 को समाप्त पखवाड़े में 17.7 लाख करोड़ रुपये था। एक्सपर्ट हमेशा कहते हैं कि जब बाजार में कैश उपलब्ध होता है तब खरीद-बिक्री होती रहती है, जो अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने में मदद करती है।

शादी की सीजन के चलते बाजार में रहेगी रौनक

मंदी से जूझती दुनिया के बीच भारत के बाजारों में त्योहारी सीजन के चलते रौनक रही। छोटे से लेकर बड़े व्यापारी कोविड महामारी के बाद से पहली बार खुलकर अपना बिजनेस कर पाए। एक रिपोर्ट के मुताबिक, अकेले धनतेरस के मौके पर 45 हजार करोड़ का बिजनेस हुआ। इस साल दिवाली पर हुए जोरदार कारोबार से उत्साहित दिल्ली समेत देश भर के व्यापारी अब शादी के सीजन में होने वाली खरीदारी के तैयारी में जुट गए हैं। यह 14 नवंबर से 14 दिसंबर तक चलेगा। इस दौरान लाखों की संख्या में शादियां होंगी और करोड़ो में पैसे खर्च किए जाएंगे। सीएआईटी रिसर्च एंड ट्रेड डेवलपमेंट सोसाइटी द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, इस अवधि के दौरान देश भर में लगभग 32 लाख शादियां होंगी, जिसमें लगभग 3.75 लाख करोड़ रुपये की खरीदारी और व्यवसाय में विभिन्न सेवाएं प्राप्त करना शामिल है।

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