कोरोना महामारी के बाद दुनिया में एक बार फिर से मंदी की आहट सुनाई दे रही है। कई देशों में महंगाई चरम पर है और नौकरियां लगातार कम हो रही है। आने वाले दिनों में कई देशों में वित्तीय स्थिति और खराब होने की आशंका जताई जा रही है। इन सब के बीच क्या आपको पता है कि महिलाओं की खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देने वाली लिपस्टिक सिर्फ सौंदर्य प्रसाधन तक ही सीमित नहीं है। यह किसी देश की वित्तीय मजबूती या कमजोरी को भी बताती है। तो आइए, जानते हैं कि किस तरह महिलाओं की लिपस्टिक से पता चलता है किसी देश की वित्तीय सूरत?
लिपस्टिक सूचकांक
वित्तीय हालात मापने वाले सूचकांकों में से एक लिपस्टिक सूचकांक भी है। इसकी मदद से आर्थिक मंदी का पता लगाया जाता है। कई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि आर्थिक हालात बेहतर होने पर महिलाएं ज्यादा कपड़े खरीदती हैं, जबकि इसकी तुलना में मंदी में महिलाएं लिपस्टिक ज्यादा खरीदती हैं। किसी अर्थव्यवस्था में लिपस्टिक की बिक्री से माध्यम से लंबे समय की मंदी का अनुमान लगाया जा सकता है।
मंदी में महिलाओं का लिपस्टिक पर होता है अधिक खर्च
मुश्किल हालात में महिलाएं ज्यादा आकर्षक दिखने के लिए लिपस्टिक पर अधिक पैसे खर्च करने लगती हैं। यह देखा गया है कि ऐसे वक्त में महिलाओं की दिलचस्पी कपड़े, जूते, पर्स आदि से घटकर लिपस्टिक की तरफ मुड़ जाती है। मंदी की स्थिति में जहां एक ओर हर प्रोडक्ट की सेल घटती है, वहीं दूसरी ओर लिपस्टिक की सेल बढ़ने लगती है।
1990 के दशक में बना था ये इंडेक्स
महिलाओं के इस व्यवहार को देखते हुए 1990 के दशक में एसटी लाउडर के चेयरमैन लियोनार्ड लाउडर ने एक इंडेक्स बनाया था, जो ऐसी स्थिति में इकोनॉमिक हेल्थ के इंडिकेटर की तरह काम करता है।
यह भी मापने का तरीका
आमतौर पर दुनिया के तमाम देश तरक्की को मापने के लिए जीडीपी का सहारा लेते हैं, लेकिन साल 1971 से ही भूटान ने इस थ्योरी को खारिज कर रखा है। आमतौर पर 1972 में भूटान नरेश जिग्मे सुंग वांगचुक ने दुनिया को तरक्की मापने का एक बेहतर फार्म्यूला दिया। उन्होंने कहा कि ग्रॉस नेशनल हेप्पीनेस-जीएनएच जीडीपी से बेहतर तरीका है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रसन्नता निकालने का यह नया फार्म्यूला भूटान स्टडीज सेंटर के मुखिया करमा उपा और कनाडियन डॉक्टर माइकल पेनाक ने दिया था। यह देश की तरक्की और खुशहाली को मापने का नायाब नजरिया था।