Highlights
- मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने के बाद किए पहले काम का दिया ब्योरा
- 2030 तक शुद्ध रूप से शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य
- विमानन क्षेत्र में एक परिवेश बनाने की जरूरत
Jyotiraditya Scindia: नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को कहा कि देश में 90 से अधिक हवाईअड्डे 2024 तक कार्बन उत्सर्जन के मामले में तटस्थ होंगे। वहीं अगले पांच साल में हवाईअड्डों की संख्या बढ़कर 220 हो जाएगी। किसी इकाई के कार्बन तटस्थ होने का मतलब है कि जितना वह अपनी गतिविधियों के जरिये कार्बन उत्सर्जन करती है, उतना ही वातावरण से कार्बन हटाती है। मंत्री ने कहा कि देश में 141 हवाईअड्डे है। इनमें से कोच्चि और दिल्ली हवाईअड्डे कार्बन तटस्थ हैं।
मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने के बाद किए पहले काम का दिया ब्योरा
ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन के राष्ट्रीय सम्मेलन में सिंधिया ने कहा, ‘‘नागर विमानन मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने के बाद जो पहला काम मैने किया, वह हवाईअड्डों पर कार्बन उत्सर्जन को लेकर खाका तैयार करना था। हमारे दो हवाईअड्डे दिल्ली और कोच्चि पहले से कार्बन तटस्थ हैं और 2024 तक देश के 92-93 हवाईअड्डे कार्बन तटस्थ होंगे। नागर विमानन चर्चा में रहने वाला क्षेत्र है। यह लोगों का काफी अधिक ध्यान आकर्षित करता है ,लेकिन अगर आप ग्रीनहाउस गैसों और कार्बन उत्सर्जन में इसके योगदान को देखें तो यह काफी कम है। दुनिया में कुल कार्बन उत्सर्जन में इसकी हिस्सेदारी महज दो प्रतिशत है।’’
2030 तक शुद्ध रूप से शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य
मंत्रालय का लक्ष्य 2030 तक शुद्ध रूप से शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य है। भारतीय हवाईअड्डे न केवल 2030 तक शुद्ध रूप से शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करेंगे, बल्कि उस समय तक हवाई यात्रियों की संख्या 40 करोड़ से अधिक होगी। फिलहाल घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की संख्या 20 करोड़ से अधिक है। लेकिन यात्रियों की संख्या में होने वाली वृद्धि को संभालने के लिये बुनियादी ढांचे में सुधार तथा उसे बढ़ाने की जरूरत है। पिछले आठ साल में देश में हवाईअड्डों की संख्या 74 से बढ़कर 141 हो गयी है और यह अगले पांच साल में बढ़कर 220 हो जाएगी।
विमानन क्षेत्र में एक परिवेश बनाने की जरूरत
मंत्री ने विमानन क्षेत्र में एक परिवेश बनाने की जरूरत पर भी जोर दिया। यह समय एक परिवेश बनाने का है। ठीक उसी प्रकार जैसा कि वाहन क्षेत्र में है। यह केवल एयरलाइन और हवाईअड्डों तक ही नहीं होना चाहिए बल्कि उड़ान और प्रशिक्षण संगठनों, कार्गो, ‘ग्राउंड हैंडलिंग’ तथा ड्रोन को लेकर भी होना चाहिए। इस तरह के परिवेश को विकसित करने के लिये मजबूती से कदम उठाए जा रहे हैं।