जिद्दी महंगाई पीछा छोड़ने को तैयार नहीं है। रह-रह कर वह अपना सर उठाने से बाज नहीं आ रही है। कभी तेल तो कभी सब्जी के दाम आसामान पर पहुंच जाते हैं। इससे कोरोना के बाद आम आदमी पर घटी कमाई और बढ़ी महंगाई दोहरा बोझ बढ़ाने का काम कर रही है। अब एक बार फिर चावल और दाल की महंगाई आम लोगों को बजट बिगारने का काम कर रहा है। बीते दो महीने में चावल और दालों की कीमत में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में सरकार को इस दोनों जरूरी खाने के सामान की कीमत को कम करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है।
दालों की कीमत तेजी से बढ़ी
देश में सभी प्रमुख दालों की कीमत में तेजी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले 6 हफ्तों में अरहर दाल और उड़द दाल की कीमतों में 15% से अधिक की वृद्धि हुई है। महाराष्ट्र के लातूर में अच्छी क्वॉलिटी की अरहर की दाल की एक्स-मिल कीमत करीब 97 रुपये रपये से बढ़कर 115 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है। इसके साथ ही उड़द, चना दाल, मूंग के दाल की कीमत में भी तेजी दर्ज की गई है। जानकारों का कहना है कि दाल की कीमत बढ़ने की सबसे बड़ी वजह जलभराव के कारण फसल नुकसान की आशंका है। इसके साथ ही चालू खरीफ सीजन में दाल की रकबे में गिरावट आई है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई के लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, अरहर का रकबा एक साल पहले की तुलना में 4.6% कम था, जबकि उड़द 2% कम है।
चावल 30% तक हुआ महंगा
करीब दो महीने में चावल के दाम तेजी से बढ़े हैं। जून-जुलाई में चावल करीब 30 फीसदी तक महंगी हुई है। बासमती चावल की कीमत 60 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 80 रुपये प्रति किलो पहुंच गई है। वहीं टुकड़े वाले बासमती चावल की कीमतों में भी उछाल देखने को मिली है। टुकड़ा बासमती चावल 30 रुपये प्रति किलो की बजाय 40 रुपये प्रति किलो के स्तर पर बिक रहा है। सामान श्रेणी से लेकर अच्छे चावल की कीमत में तेजी से बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
धान का रकबा अबतक 13% घटा
बारिश कम होने की वजह से धान की बुवाई बुरी तरह प्रभावित हुई है। ऐसे में चालू खरीफ सत्र में पांच अगस्त तक पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में धान बुवाई का रकबा 13 प्रतिशत घट गया है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, धान का रकबा पांच अगस्त को 274.30 लाख हेक्टेयर था, जो एक साल पहले की इसी अवधि में 314.14 लाख हेक्टेयर था। धान के अलावा दलहन के साथ बोया गया रकबा 119.43 लाख हेक्टेयर से मामूली घटकर 116.45 लाख हेक्टेयर रह गया है। हालांकि, मोटे अनाज, तिलहन, कपास, गन्ने, जूट और मेस्टा का रकबा अधिक रहा है।