Indo-America Relation: यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) और इंडो-अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स इन इंडिया (IACC) ने नए एमओयू पर साइन किए हैं। पहले से यह संस्थाएं एक साथ काम रही हैं। ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी, यूथ के जेंडर इश्यू, क्लाइमेंट जेंच, एग्रीकल्चर और एजुकेशन जैसे विभिन्न क्षेत्रों को सहयोग के दायरे में लाया गया है। खास तौर पर कोविड के बाद मेंटल हेल्थ पर फोकस किया गया है। एमओयू प्राइवेट सेक्टर के साथ मिलकर चाइल्ड हेल्थ, एचआईवी/एड्स, ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी, यूथ इश्यू, महिला सशक्तिकरण, क्लाइमेंट चेंज समेत कई क्षेत्रों में डेवलपमेंट को गति देगा। वायु, समुद्र प्रदूषण, कृषि, शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करेगा। साझा वैश्विक विकास प्राथमिकताओं को हासिल करने के लिए नया एमओयू अहम है। बता दें कि अमेरिकी और भारतीय व्यापार समुदायों के बीच पांच वर्षों में प्रभावी सहयोग की नींव रखी गई है।
अमेरिका के साथ मिलकर भारत तेजी से करेगा विकास
यूएसएआईडी मिशन निदेशक वीना रेड्डी ने कहा कि हम मानते है कि निजी उद्यम जीवन को ऊपर उठाने, समुदायों को मजबूत करने और सतत विकास को गति देने की यूएसएआईडी में ताकत है। यूएसएआईडी और आईएसीसी मौजूदा साझेदारी को आगे बढ़ा रहा है। एमओयू कॉमन डेवलपमेंट गोल्स को हासिल करने के लिए अमेरिकी और इंडियन प्राइवेट सेक्टर क्षमताओं का लाभ उठता है। नए एमओयू में यूएसएआईडी और आईएसीसी ने एक वर्किंग ग्रुप की स्थापना की घोषणा की है। यह ग्रुप समान परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय संगठनों और संस्थानों को साझेदार बनाने पर फोकस करेगा। ग्रुप स्थानीय प्राथमिकता के हिसाब से उपकरणों को तैयार कराएगा। स्थानीय नेटवर्क, क्षमता और संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करेगा। उसका अंतिम लक्ष्य लोकल का समुचित उपयोग होगा। आईएसीसी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. ललित भसीन ने कहा कि आईएसीसी को अगले पांच वर्षों के लिए यूएसएआईडी के साथ साझेदारी करने और दोनों देशों के बिजनेस ग्रुपों के बीच तालमेल, बदलाव से नई ऊंचाइयां हासिल हुई हैं। हर स्तर पर नवाचार हुए हैं, नई गति आई है। एजेंडा और एक ट्रैक पर काम करेंगे।
भारत में हेल्थ केयर पर कम खर्च
विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में हेल्थकेयर पर जीडीपी का एक फीसदी खर्च होता है, जबकि बांग्लादेश हमसे ज्यादा खर्च करता है। मैकिन्से की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका में एक-चौथाई कर्मचारी ऑफिस वापस नहीं जाना चाहते हैं और घर से काम करना पसंद करते हैं, लेकिन उसी रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्मचारियों के घर से काम करने के बावजूद डिप्रेशन चौगुना हो गया है। घर से काम करने से अधिक तनाव और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हुईं। 2015 और 2016 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार करीब 13% भारतीयों में कुछ न कुछ मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम है।