Highlights
- महंगा कच्चा तेल खजाने में सेंध लगा रहा है तो रुपये की गिरावट सरकार के पसीने छुड़ा रही है
- सभी समस्याएं आपस में जुड़ी हुई हैं और अंत में महंगाई के रूप में आम लोगों को परेशान कर रही हैं
- भारत के सामने इस समय सबसे बड़ी समस्या डॉलर की मजबूती या रुपये में आई गिरावट है
Indian Economy: भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय अपने सबसे नाजुक मोड़ से गुजर रही है। दो साल पहले कोरोना महामारी ने सिर्फ इंसानों को ही नहीं बल्कि देश की आर्थिक सेहत को भी बीमार बना दिया था। 2021 के आखिरी महीनों में स्थिति सुधर ही रही थी, कि फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध ने कोढ़ में खाज का काम किया। युद्ध के कारण कच्चा तेल और गैस के दाम क्या उछले अमेरिका और ब्रिटेन जैसी अर्थव्यवस्थाएं कांप गई। वहीं भारत के सभी पड़ौसी चाहें वह श्रीलंका हो या पाकिस्तान, नेपाल हो या बांग्लादेश, सभी कंगाल और बदहाल हो चुके हैं।
भारत की बात करें तो एक मजबूत इकोनॉमी होने के बावजूद कुछ संकट खलनायक के रूप में हम पर असर डाल रहे हैं। एक ओर महंगा कच्चा तेल सरकारी खजाने में सेंध लगा रहा है तो रुपये की गिरावट सरकार के पसीने छुड़ा रही है। वास्तव में ये सभी समस्याएं आपस में जुड़ी हुई हैं और अंत में महंगाई के रूप में आम लोगों को परेशान कर रही हैं। आइए जानते हैं इन्हीं खलनायकों के बारे में और कैसे भारत इन से निजात पा सकता है।
डॉलर की मजबूती या रुपये की गिरावट
भारत के सामने इस समय सबसे बड़ी समस्या डॉलर की मजबूती या रुपये में आई गिरावट है। आप इसे सिक्के के दो पहलू कह सकते हैं। मंदी की मार झेल रहा अमेरिका अपनी इकोनॉमी को जितना मजबूत बनाएगा, डॉलर पर निर्भर अर्थव्यवस्थाएं लुढ़कती ही जाएंगी। रुपये की कीमत में गिरावट का एक कारण डॉलर की मजबूती भी है, जो भारत ही नहीं कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की कमर तोड़ रही है। पाकिस्तान में 1 डॉलर 200 के पार है तो नेपाल में विनिमय दर 400 के पार चली गई है। डॉलर महंगा होने से देश में आयात होने वाला सब सामान महंगा हो जाता है। 2014 से लेकर अब 25 प्रतिशत तक टूट चुका है। वहीं सिर्फ एक साल में ही रुपया 74 से 80 तक लुढ़क चुका है।
चालू खाता का घाटा
चालू खाता किसी भी अथव्यवस्था की सेहत बताता है। यहां भी समस्या डॉलर के कारण महंगे आयात और विदेशी तेल बाजारों में जारी महंगाई है। देश तेल गैस से उर्वरक और इलेक्ट्रॉनिक सामानों के लिए विदेशों पर निर्भर है। हम जब महंगी दरों पर विदेशों से आयात करते हैं तो चालू खाता बढ़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार, चालू खाते का घाटा चालू वित्त वर्ष में उछलकर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 3.0 प्रतिशत पर पहुंचने का अनुमान है जो पिछले साल 1.2 प्रतिशत था। चूंकि चालू खाता घाटा बढ़ने के कारण अंतरराष्ट्रीय हैं ऐसे में इसका देसी इलाज करने के लिए सरकार को टैक्स या दूसरे उपाये कर घाटे को भरना होगा, इससे महंगाई के दुष्चक्र को एक बेहतर ईंधन मिलेगा।
महंगे ईंधन पर निर्भरता
दुनिया में किसी भी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने के लिए एनर्जी सबसे पहली जरूरत है। लेकिन रूस यूक्रेन युद्ध ने तेल की कीमतों में चिंगारी का काम किया। यूक्रेन युद्ध से पहले बीते साल नवंबर में कच्चा तेल 80 से 85 डॉलर प्रति बैरल के आसपास था। जो कि मार्च खत्म होते होते 140 डॉलर तक पहुंच गया। कच्चा तेल कई महीनों तक 120 डॉलर से अधिक पर रहा है। इस महंगे कच्चे तेल ने कई देशों को बर्बाद कर दिया है। वहीं करेंसी की कमजोरी से तेल की कीमतें भारत को ज्यादा झुलसा रही हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार में कमी
जैसा कि हमने पहले बताया देश की समस्याएं आपस में गुथी हुई हैं। महंगे आयात और डॉलर में मजबूती के चलते देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार सिकुडता जा रहा है। देश के पास करीब 11 महीनों के आयात के लिए अभी भी पर्याप्त मुुद्रा भंडार है। लेकिन डॉलर की बढ़ती मांग लगातार इस पर दबाव बना रही है। जुलाई के पहले लगातार चार हफ्ते तक विदेशी मुद्रा भंडार में कमी देखी गई थी। 29 जुलाई 2022 को सप्ताह के अंत होते होते भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 573.5 अरब डॉलर पर पहुंच गया। जो बीते जुलाई के पहले हफ्ते में 8.062 डॉलर घटकर 580.252 डॉलर रह गया था। वहीं रुपये को मजबूत बनाने के लिए भी भारत सरकार ने भारी मात्रा में डॉलर बेचे हैं।
अमेरिका की सेहत
कहा जाता है कि अमेरिका को जब छींक आती है तब दुनिया भर को बुखार आ जाता है। 2008 की आर्थिक मंदी इसका एक ताजा उदाहरण है। 2022 को लेकर भी बड़े जानकार भी अमेरिकी मंदी की भविष्यवाणी कर रहे हैं। अमेरिका में महंगाई 40 साल के शिखर पर है। ऐसे में वहां का केंद्रीय बैंक डॉलर को मजबूत बनाने का भरसक प्रयास कर रहा है इसके लिए ब्याज दरें भी बढ़ रही हैं। लेकिन इससे अमेरिका तो मजबूत हो रहा है लेकिन विकासशील देशों के पसीने छूट रहे हैं। सिर्फ 2022 में ही विदेशी निवेशकों यानि एफआईआई ने भारत से 2.3 लाख करोड़ के शेयर बेचकर अपना पैसा यानि डॉलर अमेरिका वापस ले गए हैं। इस परिस्थिति में भारतीय रिवर्ज बैंक को अपना बाजार विदेशी निवेशकों के मुफीद बनाना होगा, जिससे विदेशी निवेशक अमेरिका की बजाए भारत में पैसा लगाने को सोचें।