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चीन से FDI बढ़ाया तो होगा फायदा ही फायदा, इकोनॉमिक सर्वे में क्यों कही गई यह बात?

भारत के पास ‘चीन प्लस वन’ रणनीति से लाभ उठाने के लिए दो विकल्प हैं। या तो वह चीन की आपूर्ति श्रृंखला में शामिल हो जाए या फिर चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा दे।

Edited By: Pawan Jayaswal
Published : Jul 22, 2024 23:44 IST, Updated : Jul 23, 2024 7:46 IST
चीन से एफडीआई
Photo:FILE चीन से एफडीआई

चीन के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच सोमवार को संसद में पेश बजट-पूर्व आर्थिक समीक्षा 2023-24 में लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने और निर्यात बाजार का दोहन करने के लिए पड़ोसी देश (चीन) से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ाने की वकालत की गई है। आर्थिक समीक्षा कहती है, चूंकि अमेरिका और यूरोप अपनी तात्कालिक आपूर्ति चीन से हटा रहे हैं, इसलिए पड़ोसी देश से आयात करने के बजाय चीनी कंपनियों द्वारा भारत में निवेश करना और फिर इन बाजारों में उत्पादों का निर्यात करना अधिक प्रभावी है। भारत वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (जीवीसी) में अपनी भागीदारी को बढ़ाना चाहता है। इसलिए उसे पूर्वी एशिया की अर्थव्यवस्थाओं की सफलताओं तथा रणनीतियों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। इन अर्थव्यवस्थाओं ने आमतौर पर दो मुख्य रणनीतियों का अनुसरण किया है। व्यापार लागत को कम करना और विदेशी निवेश को सुगम बनाना।

चीन+1 की रणनीति से उठाएं फायदा

समीक्षा में कहा गया कि भारत के पास ‘चीन प्लस वन’ रणनीति से लाभ उठाने के लिए दो विकल्प हैं। या तो वह चीन की आपूर्ति श्रृंखला में शामिल हो जाए या फिर चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा दे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘‘इन विकल्पों में से चीन से एफडीआई पर ध्यान केंद्रित करना अमेरिका को भारत के निर्यात को बढ़ाने के लिए अधिक आशाजनक प्रतीत होता है, जैसा कि पूर्व में पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं ने किया था।’’ इसके अलावा, ‘चीन प्लस वन’ दृष्टिकोण से लाभ प्राप्त करने के लिए एफडीआई को एक रणनीति के रूप में चुनना, व्यापार पर निर्भर रहने की तुलना में अधिक लाभप्रद प्रतीत होता है।

चीन के साथ बढ़ रहा व्यापार घाटा

समीक्षा कहती है, ‘‘ऐसा इसलिए है, क्योंकि चीन, भारत का शीर्ष आयात भागीदार है और चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़ रहा है। चूंकि अमेरिका तथा यूरोप अपनी तत्काल आपूर्ति चीन से हटा रहे हैं, इसलिए चीनी कंपनियों द्वारा भारत में निवेश करना और फिर इन बाजारों में उत्पादों का निर्यात करना अधिक प्रभावी है, बजाय इसके कि वे चीन से आयात करें, न्यूनतम मूल्य जोड़ें और फिर उन्हें पुनः निर्यात करें।’’ इसमें बताया गया कि चीन से एफडीआई प्रवाह में वृद्धि से निर्यात को बढ़ावा देने के साथ-साथ भारत की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भागीदारी बढ़ाने में मदद मिल सकती है। किसी भी क्षेत्र में वर्तमान में चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सरकार की मंजूरी की जरूरत होती है।

24 साल में आया सिर्फ 2.5 अरब डॉलर का निवेश

भारत में अप्रैल, 2000 से मार्च, 2024 के दौरान कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश इक्विटी प्रवाह में चीन केवल 0.37 प्रतिशत (2.5 अरब अमेरिकी डॉलर) हिस्सेदारी के साथ 22वें स्थान पर था। इस संबंध में पूछे जाने पर मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने कहा कि इसके माध्यम से वह केंद्र से चीन से एफडीआई निवेश के संबंध में नीति की फिर से समीक्षा करने का आग्रह कर रहे हैं। उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा, “मैं पुनः समीक्षा की मांग कर रहा हूं। मैं कह रहा हूं कि माल आयात और पूंजी आयात करने के बीच संतुलन की आवश्यकता है। मैंने ब्राजील और तुर्की द्वारा किए गए काम का उदाहरण दिया। उन्होंने वाहनों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन फिर उन्होंने उन्हें अपने देश में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया।” उन्होंने कहा कि भारत का चीन के साथ बड़ा व्यापार घाटा है और यदि भारत आयात जारी रखेगा तो व्यापार घाटा बढ़ता रहेगा।

अभी स्वत: मंजूर मार्ग से आता है ज्यादातर निवेश

नागेश्वरन ने कहा, “इसका यह भी अर्थ है कि आप स्वयं को असुरक्षित बना रहे हैं। उन क्षेत्रों का चयन करें जिनमें आप निवेश कर सकते हैं, तब आपके पास भारतीय उद्यमियों के लिए तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने और एक समय पर आत्मनिर्भर बनने का भी मौका होगा।” वर्तमान में, भारत में आने वाला ज्यादातर विदेशी निवेश स्वत: मंजूर मार्ग से आता है। हालांकि, भारत के साथ स्थलीय सीमा साझा करने वाले देशों से आने वाले एफडीआई के लिए किसी भी क्षेत्र में अनिवार्य रूप से सरकारी अनुमोदन की आवश्यकता होती है।

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