साल 2024 में भारत का कुल माल और सेवाओं (गुड्स और सर्विस) का निर्यात 814 अरब अमेरिकी डॉलर को पार करने का अनुमान है। यह 5. 58 प्रतिशत की ग्रोथ है। आर्थिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने मंगलवार को यह अनुमान लगाया है। पीटीआई की खबर के मुताबिक, साल 2023 में, देश का माल और सेवाओं का निर्यात 768. 5 अरब अमेरिकी डॉलर था। इस वर्ष, रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि साल 2024 में माल निर्यात 441.5 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। यह पिछले वर्ष के 431. 4 अरब अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 2. 34 प्रतिशत की मामूली ग्रोथ दर्शाता है।
भारत का निर्यात परिदृश्य
खबर के मुताबिक, सर्विस एक्सपोर्ट 10.31 प्रतिशत बढ़कर 372.3 अरब अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जो 2023 में 337.5 अरब अमेरिकी डॉलर था। इसमें कहा गया है कि भारत का कुल निर्यात, जिसमें गुड्स और सर्विस हैं, 2024 में 814 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक होने का अनुमान है, जो 2023 में 768.5 अरब अमेरिकी डॉलर की तुलना में 5.58 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि भारत का निर्यात परिदृश्य एक ऐसे परिवर्तन से गुजर रहा है जो अवसरों और कमजोरियों दोनों को उजागर करता है।
इन क्षेत्रों में एक्सपोर्ट में तेजी
मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्र प्रमुखता प्राप्त कर रहे हैं, एक्सपोर्ट बास्केट में मशीनरी की हिस्सेदारी 2014 में 3.8 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 6.9 प्रतिशत हो जाएगी और इलेक्ट्रॉनिक्स 2014 में 3.3 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 7.9 प्रतिशत हो जाएगी। श्रीवास्तव ने कहा कि ये रुझान उच्च मूल्य वाले क्षेत्रों में भारत की बढ़ती क्षमताओं को रेखांकित करते हैं, जो दीर्घकालिक निर्यात लचीलेपन के लिए एक जरूरी बदलाव है। हालांकि, निर्यात के पारंपरिक क्षेत्रों में गिरावट देखी जा रही है।
वस्त्र और परिधान अब सिर्फ इतना रह गया
2004 में निर्यात में 21.1 प्रतिशत का योगदान देने वाले वस्त्र और परिधान अब सिर्फ 8 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि रत्न और आभूषण 2004 में 16.9 प्रतिशत से घटकर 2024 में 7.5 प्रतिशत हो गए हैं। ये गिरावट न केवल बदलती वैश्विक मांग को दर्शाती है, बल्कि श्रम-प्रधान उद्योगों में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए भारत के संघर्ष को भी दर्शाती है। श्रीवास्तव ने चेतावनी दी कि आने वाला वर्ष भारतीय निर्यात के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करता है, वैश्विक व्यापार वृद्धि सुस्त बनी हुई है, जो विकसित बाजारों में धीमी आर्थिक सुधार और रूस-यूक्रेन युद्ध और इजराइल-हमास संघर्ष जैसे भू-राजनीतिक तनावों से बाधित है।