कारोबार और NGO पर भरोसे के मामले में भारत शीर्ष पर है। वहीं, मीडिया पर विश्वास के मामले में यह चौथे और सरकार पर भरोसे के मामले में पांचवें स्थान पर है। सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में यह आकलन पेश किया गया। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की वार्षिक बैठक से पहले यहां जारी ‘एडेलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर 2024’ ने सरकार के प्रति अपने लोगों के भरोसे के संदर्भ में सऊदी अरब को शीर्ष पर रखा है जबकि मीडिया में भरोसे के मामले में चीन को पहला स्थान दिया है। वहीं, अपने नियोक्ता पर भरोसा जताने के मामले में इंडोनेशिया शीर्ष पर है जबकि भारत इस मामले में दूसरे स्थान पर है। यह सर्वेक्षण दिखाता है कि विकासशील देश अपनी-अपनी आबादी की समग्र विश्वास धारणा के मामले में विकसित देशों से कहीं आगे हैं।
28 देशों में किया गया यह सर्वे
इस सर्वेक्षण में 28 देशों के 32,000 से अधिक उत्तरदाताओं को शामिल किया गया। सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किए गए समग्र सूचकांक में भारत पिछले साल के चौथे स्थान से दूसरे स्थान पर आ गया है जबकि चीन ने अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखा है। समग्र सूचकांक एनजीओ, व्यवसाय, सरकार और मीडिया में लोगों के भरोसे के औसत प्रतिशत पर आधारित है। इसके उलट, सबसे कम भरोसेमंद देश के रूप में ब्रिटेन ने दक्षिण कोरिया की जगह ले ली। इस सर्वेक्षण में ताकतवर देशों में मुख्यालय वाली कंपनियों पर भी कम भरोसा दिखाया गया है। सर्वेक्षण में शामिल 28 में से 17 देशों में सरकार पर अविश्वास पाया गया, जिनमें अमेरिका, जर्मनी एवं ब्रिटेन भी शामिल हैं। वहीं मीडिया को लेकर वैश्विक स्तर पर सबसे कम भरोसा दर्ज किया गया है। अमेरिका, जापान एवं ब्रिटेन समेत 28 में से 15 देशों में मीडिया पर अविश्वास जताया गया है।
जानबूझकर गुमराह करते हैं सरकारों के नेता
एक अनुमान के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर 63 प्रतिशत लोग इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि सरकारों के नेता जानबूझकर लोगों को यह कहकर गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें मालूम जानकारियां झूठी या बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई हैं। कारोबारी नेताओं के मामले में यह आंकड़ा 61 प्रतिशत और पत्रकारों के लिए 64 प्रतिशत है। प्रतिभागियों के बीच सूचना युद्ध का डर पिछले वर्ष की तुलना में छह प्रतिशत बढ़कर 61 प्रतिशत हो गया। यह समाज से जुड़े डर में सबसे बड़ी वृद्धि है। सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, तमाम लोगों को लगता है कि सरकार, वित्त मुहैया कराने वालों और राजनीतिक प्रक्रिया के कारण विज्ञान भी अपनी आजादी खो रहा है। अमेरिका में दो-तिहाई लोगों ने विज्ञान का राजनीतिकरण होने की बात की है जबकि चीन में 75 प्रतिशत लोग वैज्ञानिक शोधों पर असर को स्वीकार करते हैं।