दुनिया में पिछले कई दिनों से जारी भू-राजनीतिक तनाव का असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों पर देखा जा रहा है। बुधवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में लगातार तीसरे दिन गिरावट दर्ज की गई। यह गिरावट उच्च मुद्रास्फीति दर के चलते अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में किसी भी समय कटौती की उम्मीद नहीं होने की वजह से आई है। लेकिन ऐसे हालात ने भारत के लिए राहत प्रदान की है। भारत को इससे फायदा हो रहा है। रूस से सस्ता तेल खरीदना जारी रखने की भारत की रणनीति का ही नतीजा है कि वित्त वर्ष 2022-23 के पहले 11 महीनों के दौरान देश के तेल आयात बिल में लगभग 7.9 बिलियन डॉलर की बचत हुई है और देश को अपने चालू खाता घाटे को कम करने में भी मदद मिली है।
कच्चे तेल की कीमत
बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड की कीमतें पिछले सप्ताह के आखिर में 84 डॉलर प्रति बैरल के करीब से घटकर अब 82.28 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई हैं। IANS की खबर के मुताबिक, बुधवार को यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड (डब्ल्यूटीआई) वायदा 78.02 डॉलर पर कारोबार कर रहा था, जो कीमतों में और नरमी का संकेत है। बता दें, चूकि भारत अपनी जरूरत का करीब 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है, इसलिए तेल की कीमतों में गिरावट से देश का आयात बिल कम होता है और रुपया मजबूत होता है।
भारत को कैसे हो रहा फायदा
यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर पश्चिमी देशों द्वारा इन खरीदों को रोकने के दबाव के बावजूद सरकार ने तेल कंपनियों को रियायती कीमतों पर रूसी कच्चा तेल खरीदने की अनुमति देकर देश के तेल आयात बिल में कटौती करने में भी मदद की है। रूस अब भारत को कच्चे तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है, जिसने पहले इराक और सऊदी अरब की जगह ली थी। भारत वास्तव में रूस के समुद्री तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, जिसकी अप्रैल में भारत के कुल तेल आयात में लगभग 38 प्रतिशत हिस्सेदारी थी।
देश के तेल आयात बिल में आई कमी
मॉस्को के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखने में दृढ़ रही है। चूंकि भारत दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है, इसलिए रूसी तेल की इन बड़ी खरीदों ने विश्व बाजार में कीमतों को अधिक उचित स्तर पर रखने में भी मदद की है, जिसका लाभ दूसरे देशों को भी मिला है।
रूस से आयातित कच्चे पेट्रोलियम का हिस्सा बढ़ा
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि मात्रा के लिहाज से रूस से आयातित कच्चे पेट्रोलियम का हिस्सा वित्त वर्ष 2024 के 11 महीनों में 36 प्रतिशत हो गया, जबकि पश्चिम एशियाई देशों (सऊदी अरब, यूएई और कुवैत) से आयातित हिस्सा 34 प्रतिशत से घटकर 23 प्रतिशत हो गया। रूसी तेल पर छूट से तेल आयात बिल में भारी बचत हुई। आईसीआरए की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस से आयात का अनुमानित इकाई मूल्य वित्त वर्ष 2023 और वित्त वर्ष 2024 के 11 महीनों में पश्चिम एशिया से संबंधित स्तरों की तुलना में क्रमशः 16.4 प्रतिशत और 15.6 प्रतिशत कम था।