चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीने में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा पूरे वित्त वर्ष के लक्ष्य का 17.2 प्रतिशत रहा है। शुक्रवार को जारी सरकारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। महालेखा नियंत्रक (सीजीए) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, कुल मिलाकर राजकोषीय घाटा जुलाई के अंत तक 2,76,945 करोड़ रुपये रहा है। पिछले वित्त वर्ष (2023-24) की इसी अवधि में घाटा बजट अनुमान (बीई) का 33.9 प्रतिशत था। केंद्रीय बजट में सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2024-25 में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.9 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा है।
पिछले साल GDP का 5.6% था घाटा
वित्त वर्ष 2023-24 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.6 प्रतिशत था। कुल मिलाकर, सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे को 16,13,312 करोड़ रुपये तक सीमित रखना है। चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों के लिए केंद्र सरकार के आय-व्यय के आंकड़ों का खुलासा करते हुए सीजीए ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के लिए शुद्ध कर राजस्व 7.15 लाख करोड़ रुपये या बजट अनुमान का 27.7 प्रतिशत था। जुलाई, 2023 के अंत तक शुद्ध कर राजस्व संग्रह अनुमान का 25 प्रतिशत था।
बजट अनुमान का 27 प्रतिशत रहा कुल खर्च
जुलाई तक के चार महीनों में केंद्र सरकार का कुल व्यय 13 लाख करोड़ रुपये या बजट अनुमान का 27 प्रतिशत रहा। एक साल पहले समान अवधि में यह खर्च बजट अनुमान का 30.7 प्रतिशत था। कुल व्यय में से 10,39,091 करोड़ रुपये राजस्व खाते में और 2,61,260 करोड़ रुपये पूंजी खाते में थे। कुल राजस्व व्यय में से 3,27,887 करोड़ रुपये ब्याज भुगतान के लिए तथा 1,25,639 करोड़ रुपये प्रमुख सब्सिडी के लिए थे। सीजीए ने कहा कि जुलाई तक केंद्र द्वारा करों के हिस्से के रूप में राज्य सरकारों को 3,66,630 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए गए हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 57,109 करोड़ रुपये अधिक है।
क्या है राजकोषीय घाटा
राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और राजस्व के बीच का अंतर है। यह सरकार द्वारा आवश्यक कुल उधारी का संकेत है। रेटिंग एजेंसी इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि केंद्र का राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जुलाई अवधि में आधे से अधिक घटकर 2.8 लाख रुपये रह गया, जो एक साल पहले इसी अवधि में 6.1 लाख करोड़ रुपये था। इसका कारण चुनावी महीनों के दौरान पूंजीगत व्यय में कमी और भारतीय रिजर्व बैंक से प्राप्त पर्याप्त लाभांश था। उन्होंने कहा कि राजस्व प्राप्तियों का परिदृश्य काफी अनुकूल प्रतीत होता है, जबकि पूंजीगत व्यय और विनिवेश लक्ष्य हासिल होने की संभावना कम है।