Highlights
- हमें इस उत्साह को बनाए रखने की जरूरत: PM
- अमृत काल में और अधिक मेहनत करने की जरूरत
- हर भारतीय इस पर गर्व महसूस कर रहा है
PM नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और यह कोई साधारण उपलब्धि नहीं है। मोदी ने गुजरात में सूरत के ओलपाड इलाके में आयोजित एक चिकित्सा शिविर में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा, ''हमें इस उत्साह को बनाए रखने की जरूरत है।'' इस मौके पर विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभार्थी भी मौजूद थे। प्रधानमंत्री ने कहा, ''हाल ही में भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। इस उपलब्धि ने हमें वर्तमान अमृत काल में और अधिक मेहनत करने तथा बड़े लक्ष्यों को हासिल करने का भरोसा दिया है। यह उपलब्धि सामान्य नहीं है।
हर भारतीय गर्व महसूस कर रहा
हर भारतीय इस पर गर्व महसूस कर रहा है। हमें इस उत्साह को बनाए रखने की जरूरत है।'' मोदी ने केंद्र की प्रधानमंत्री आवास योजना का जिक्र करते हुए कहा, "पिछले आठ वर्षों के दौरान सरकार द्वारा गरीबों के लिए तीन करोड़ घर बनाए गए हैं। इनमें से लगभग 10 लाख घर गुजरात में बनाए गए हैं।''
महंगाई को संभालने के लिए बेहतर तालमेल की जरूरत: सीतारमण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए राजकोषीय नीति और अन्य कारकों के साथ अधिक बेहतर ढंग से तालमेल बिठाना होगा। उन्होंने आर्थिक थिंक टैंक इक्रियर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि मुद्रास्फीति प्रबंधन को केवल मौद्रिक नीति पर नहीं छोड़ा जा सकता है, जो कई देशों में पूरी तरह से अप्रभावी साबित हुई है। वित्त मंत्री ने कहा, ''आरबीआई को कुछ हद तक तालमेल बिठाना होगा। हो सकता है कि यह तालमेल उतना न हो, जितना कि अन्य पश्चिमी विकसित देश में होता है। मैं रिजर्व बैंक को कुछ बता नहीं रही हूं। मैं आरबीआई को कोई आगे का निर्देश नहीं दे रही हूं, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए मौद्रिक नीति के साथ ही राजकोषीय नीति को भी काम करना है।'' उन्होंने कहा कि ऐसी अर्थव्यवस्थाएं हैं, जहां नीति को इस तरह तैयार किया गया है कि मुद्रास्फीति को संभालने के लिए मौद्रिक नीति और ब्याज दर प्रबंधन एकमात्र साधन हैं। सीतारमण ने कहा, ''मैं कहूंगी कि भारत का मुद्रास्फीति प्रबंधन कई अलग-अलग गतिविधियों की साझा कवायद है और जिनमें से ज्यादातर आज की परिस्थितियों में मौद्रिक नीति से बाहर है।''