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इतिहास के पन्नों में दबी Bond की वो दास्तां जिससे हिल गईं कई देशों की सरकारें, आज 500 ट्रिलियन डॉलर के इस बाजार पर अरब देशों का कब्जा

Bond Market in World: सरकार को जब पैसों की जरूरत होती है तब वह एक निश्चित ब्याज दर पर बॉन्ड जारी करती है। यह सेम नियम प्राइवेट कंपनियों पर भी लागू होता है। आज के आर्टिकल में हम यह जानेंगे कि लोन मार्केट में बॉन्ड ने अपनी जेम्सगिरी कैसे कायम की? इसकी शुरुआत कब हुई? आइए पन्ने पलटते हैं।

Written By: Vikash Tiwary @ivikashtiwary
Updated on: April 20, 2023 8:40 IST
History of Bond- India TV Paisa
Photo:INDIA TV History of Bond

History of Bond: बॉन्ड का मतलब प्रतिभूति या ऋणपत्र होता है। इसे जारी कर सरकार से लेकर बड़ी कंपनियां वित्तीय संस्थान और रिटेल निवेशक से पैसे उधार लेती हैं। बॉन्ड जारी करने के बदले वह एक निश्चित ब्याज दर पर भुगतान करने का वादा करता है। ये जानकारी जारी किए गए बॉन्ड पर लिखी होती है, जिसे कूपन रेट भी कहा जाता है। आम तौर पर बड़े-बड़े बैंक सरकार द्वारा जारी किए गए बॉन्ड को खरीदते हैं। कई बार उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ता है। हाल ही में जब अमेरिका के बॉन्ड पर मिलने वाले ब्याज में कमी आई थी तो सिलिकॉन वैली जैसे बड़े बैंक दिवालिया घोषित हो गए थे। एक बार फिर बॉन्ड चर्चा में है। इस बार भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के निदेशक मंडल ने फाइनेंशियल ग्लोबल ऑपरेशन को लेकर चालू वित्त वर्ष में बॉन्ड के जरिये दो अरब डॉलर (लगभग 16,000 करोड़ रुपये) जुटाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। एसबीआई ने शेयर बाजार को दी सूचना में कहा कि बैंक के निदेशक मंडल ने वित्त वर्ष 2023-24 में सार्वजनिक प्रस्ताव में दो अरब डॉलर तक कोष एकमुश्त या किस्तों में जुटाने के प्रस्ताव को मंगलवार को मंजूरी दे दी। एसबीआई ने पिछले महीने 8.25 प्रतिशत ब्याज पर टियर-1 बॉन्ड जारी कर 3,717 करोड़ रुपये जुटाए थे।

History of Bond

Image Source : INDIA TV
History of Bond

इतिहास के पन्नों में बॉन्ड की जेम्सगिरी

इतिहास के पन्नों में अगर आप बॉन्ड को खोजने की कोशिश करेंगे तो आपको करीब 2400 ईसा पूर्व जाना पड़ेगा, क्योंकि बॉन्ड का पहला प्रमाण उसी समय मिला था। मेसोपोटामिया की खुदाई में एक पत्थर मिली थी जो दो व्यक्तियों के बीच किसी खास आर्थिक उद्देश्य को लेकर जारी की गई थी। वह आज भी पेन्सिलवेनिया म्यूजियम ऑफ आर्कियोलॉजी में मौजूद है। उसके बाद बॉन्ड के बारे में ठीक-ठाक जानकारी 1100 के दशक की है। सिडनी होमर के उपन्यास 'ए हिस्ट्री ऑफ़ इंटरेस्ट रेट्स' में बताया गया है कि वेनिस ने उस समय 5% के ब्याज दर पर बॉन्ड जारी किए थे। उस समय जारी किए गए बॉन्ड से मिले पैसे का इस्तेमाल युद्ध लड़ने में रजवाड़े किया करते थे। इसके बाद से दुनियाभर में बॉन्ड के प्रचलन में तेजी देखी जाने लगी। 1863 की बात है जब इंग्लैंड ने फ्रांस के खिलाफ युद्ध जीतने के लिए बॉन्ड जारी किए थे। अमेरिका ने 1917 में जर्मनी के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए 3.5% के मामूली ब्याज दर पर 5 मीलियन डॉलर के बॉन्ड जारी किया था। 

Bond Market in World

Image Source : FILE
मेसोपोटामिया की खुदाई में मिला था ये बॉन्ड

बॉन्ड के आगे इंग्लैंड के राजा ने टेक दिए थे घुटने

कई देश ऐसे भी हैं जो बॉन्ड जारी करने के बाद उसपर तय किए गए ब्याज दर को चुकाने से खुद को पीछे खींच लिया था। उसमें से एक नाम इग्लैंड का भी है, जब 17वीं सदी में गद्दी पर चार्ल्स-II थे। उस समय डच शासकों का दबदबा बढ़ता जा रहा था। चार्ल्स द्वितीय के पास एक ही ऑप्शन था कि वह युद्ध छेड़ दे। इसके लिए पैसे चाहिए थे। उन्होंने मार्केट से पैसे कर्ज पर लेने की सोची। बॉन्ड जारी किए गए। उस समय आज के बॉन्ड को कोलेटराइज्ड ट्रेजरी ऑर्डर (CTO) कहा जाता था। कुछ समय बाद एक बार फिर से चार्ल्स-II ने सोना व्यापारियों से कर्ज लेनी चाही। ये बात सन् 1671 के सितंबर-अक्टूबर महीने की रही होगी। तब उन व्यापारियों ने कर्ज देने से मना कर दिया। इसका परिणाम ये हुआ कि इंग्लैंड का तख्त दिवालिया घोषित हो गया। इंग्लैंड इतिहास में पहली बार किसी राजा ने खुद को डिफॉल्ट घोषित कर दिया था। आज के परिपेक्ष्य में आप देखें तो लगभग देश बॉन्ड जारी करते हैं। बस अंतर इतना है कि तब बॉन्ड जारी करने का मुख्य उद्देश्य युद्ध लड़ना होता था, लेकिन आज के समय में ये बॉन्ड आर्थिक तौर पर खुद को मजबूत करने और विकास परियोजनाओं को नई दिशा देने के लिए जारी किया जाता है।

England prince charls 2nd

Image Source : FILE
बॉन्ड से जुड़ी ऐतिहासिक पेंटिंग, इसे इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय के समय का बताया जाता है।

आज बॉन्ड मार्केट पर है अरब देशों का कब्जा

पिछले कुछ दशकों में वैश्विक लोन का स्तर बढ़ा है। अगर बॉन्ड के जरिए जुटाए गए पैसों का मार्केट कैप देखें तो 2009 में 170 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर CY2021 के अंत में 305 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस समय बॉन्ड मार्केट ग्लोबली 500 ट्रिलियन डॉलर को पार कर चुका है। दुनिया के विभिन्न देशों में इस समय कर्ज का स्तर सेकेंड वर्ल्ड वार से भी अधिक पहुंच गया है। इकोनॉमिस्ट के एक स्टडी के मुताबिक, एक साथ 53 देश सॉवरेन बॉन्ड के चलते लिए कर्ज के बोझ से दिवालिया होने के कगार पर हैं। विश्व में आज के समय में सबसे अधिक बॉन्ड पर कर्ज देने वाले देशों में अरब कंट्री शामिल है। हमने हाल ही में देखा था कि जब क्रेडिट सूइस को सउदी अरब से कर्ज चाहिए था और इस अरब देश ने कर्ज देने से मना कर दिया तब बैंक डूब गया। बता दें ये कर्ज इन्हें जारी किए गए बैंक के बदले ही मिलने वाला था। एक बड़ा उदाहरण अडानी ग्रुप भी है, जब हिंडनबर्ग ने कंपनी पर शॉर्ट सेलिंग के आरोप लगाए तो कंपनी ने खुद की साख को बचाने के लिए अरब देशों का रूख किया था। हालांकि उन्होंने कर्ज देने से मना कर दिया था। 

कैसे काम करते हैं ये बॉन्ड?

सरकार को जब पैसों की जरूरत होती है तब वह एक निश्चित ब्याज दर पर बॉन्ड जारी करती है। यह सेम नियम प्राइवेट कंपनियों पर भी लागू होता है। कंपनियों के लिए बॉन्ड जारी कर मार्केट से पैसा उठाना सबसे बेहदर सौदा माना जाता है, क्योंकि इसपर ना ही उन्हें अपनी हिस्सेदारी बेचनी पड़ती है ना ही इक्विटी dilute करने की जरूरत पड़ती है। आजकल ये बॉन्ड सर्टिफिकेट फॉर्म के बजाय डिजिटल फॉर्म में होते हैं। इनकी मैच्योरिटी पीरियड 3 वर्ष, 5 वर्ष, 10 वर्ष की होती है। कई बार मैच्योरिटी पीरियड संस्थाएं अपने हिसाब से भी तय कर देते हैं। आमतौर पर बॉन्ड 5 से 14 फीसदी का रिटर्न देते हैं। बता दें कि मुख्य रूप से 9 अलग-अलग टाइप के बॉन्ड जारी किए जाते हैं, जिसमें सरकारी बॉन्ड, मुन्सिपल बॉन्ड, कॉर्पोरेट बॉन्ड, सिक्योर्ड बॉन्ड, अनसिक्योर्ड बॉन्ड, फ्लोटिंग इंटरेस्ट बॉन्ड, इन्फ्लेशन लिंक्ड बॉन्ड और परपेचुअल बॉन्ड शामिल हैं। बॉन्ड पर सरकार लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) नाम से 10% की दर से टैक्स चार्ज करती है। बॉन्ड में सम्पूर्ण बॉन्ड अवधि के दौरान मिलने वाले कुल रिटर्न को यील्ड टू मैच्योरिटी कहा जाता हैं।

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