Highlights
- पूरी दुनिया आ सकती है मंदी के चपेट में
- सबसे ज्यादा खतरा श्रीलंका को है
- चीन में मंदी आने की 20 फीसदी आशंका
Global Economic Recession: चीन (China) मे सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। कोरोना वायरस (Coronavirus) के प्रकोप से चीन की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। जून तिमाही में खुदरा महंगाई भी बढ़ी है। अर्थव्यस्था में महज 0.4 फीसदी की वृद्धी हुई है, जो दो साल में सबसे कम है। शुक्रवार को चीन सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ो से आर्थिक मंदी की आहट सुनाई देने लगी है। 2008 में अमेरिका (America) में आई मंदी की राह पर चीन कैसे पहुंचा? क्या भारत (India) को भी उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा? साथ ही हम आगे ये भी समझने की कोशिश करेंगे कि क्या सच में आर्थिक मंदी पूरी दुनिया में आने जा रही है?
बैंको ने फ्रीज किया आम आदमी का पैसा
इस साल के अप्रैल महीने से ही चीन के कई प्रांतों के स्थानीय बैंको के ग्राहक अपना पैसा नहीं निकाल पा रहे हैं। नगदी के संकट के चलते चीन के कई बैंको ने पैसा निकालने पर पाबंदी लगा दी है। एक रिपोर्ट्स में कहा गया है कि इससे अब तक 4 लाख से अधिक ग्राहक परेशान हुए हैं। लगभग 6 अरब डॉलर की राशि फ्रीज की गई है। चीन की इकोनॉमी 17.5 ट्रिलियन डॉलर की है। इसका एक तिहाई हिस्सा रियल स्टेट और उससे जुड़े उद्योग से जुड़ा है। लेकिन पिछले साल चीन की एक बड़ी रियल स्टेट कंपनी एवरग्रांडे ने बैंको से लिए लोन को जमा करने से मना कर दिया था। तब से स्थिति और खराब होती गई। इस कंपनी के पर 300 अरब डॉलर का कर्ज है।
2008 की अमेरिका जैसी स्थिति
चीन की रियल स्टेट कंपनियों ने बैंक से काफी उधार लिया हुआ है। अब उन कंपनियों के बेचे हुए मकान की EMI चीन के लोग नहीं दे रहे हैं। उनका कहना है कि कोरोना के चलते उनके रोजगार को नुकसान पहुंचा है। उनके पास उतने पैसे नहीं है कि वो लोन की किस्त चुका सके। साथ ही बन कर तैयार हो चुकी परियोजनाओं को नए ग्राहक नहीं मिल रहे हैं। इससे बिल्डर्स के पास पैसे का संकट खड़ा हो गया है। चीन की सरकार ने मदद करने से मना कर दिया है। यही स्थिति 2008 में अमेरिका में हुई थी। वहां के कंपनियों ने बिना किसी सिक्योरिटी के लोन बांट दिए थे, जो बाद में कवर नहीं किए जा सकें। इसके चलते अमेरिका सदी की सबसे बड़ी बंदी के दौर से गुजरा। अब वैसी ही स्थिति चीन में होती दिखाई दे रही है।
चीन की दो साल से अर्थव्यवस्था ठप
चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकीय ब्यूरो (NBC) की तरफ से जारी किए गए आंकड़ो के मुताबिक अप्रैल-जून की तिमाही में दुनिया की दुसरी बड़ी अर्थव्यस्था का विकास दर 0.4 फीसदी रहा है। हालांकि चीन ने 2022 की पहली छमाही में सालाना आधार पर सकल घरेलू उत्पाद पर 2.5 फीसदी की बढ़त हासिल की है। एनबीएस के प्रवक्ता फू लिंघुई ने इकोनॉमी में आई कमी को लेकर कहा, "कोरोना वायरस से चीन को काफी नुकसान हुआ है। घरेलू स्तर पर महामारी का असर अब भी कायम है और घटती मांग के साथ आपूर्ति शृंखला भी चपेट में है। हम सुधार करने की कोशिश लगातार कर रहे हैं। इसके लिए नई नीतियां बनाई जा रही है साथ हीं जो बाहरी अस्थिरताएं और अनिश्चितताएं मौजूद हैं उसे कम कर विकास की रफ्तार बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।"
मंदी आने की प्रबल संभावना
ब्लूमबर्ग ने हाल ही में एक सर्वे कराया था। यह इसलिए कराया गया था ताकि ये पता लगाया जा सकें कि दुनिया के किन देशों में मंदी आने की प्रबल संभावना है। सर्वे के मुताबिक, चीन में मंदी आने की 20 फीसदी आशंका जताई जा रही है। सबसे ज्यादा खतरा श्रीलंका को है। वहां 85 फीसदी है। वहीं अमेरिका और यूरोप के देशों में 40 से 50 फीसदी तक मंदी का जोखिम दिख रहा है।
दुनिया में क्यों आ सकती है मंदी?
दुनिया में मंदी की आहट का सबसे बड़ा कारण बन रहा है ग्लोबल सप्लाई चेन का सही तरह से काम नहीं कर पाना। कोरोना महामारी से कोई देश अछूता नहीं रहा है। इसकी चपेट में लगभग सभी देश आ चुके हैं। कुछ जगह कोरोना के चलते पाबंदिया अभी भी लगी हुई है। इन पाबंदियों के चलते कल-कारखानों और प्रोडक्शन पहले की तरह काम नहीं कर पा रहे हैं। इस महामारी से दुनिया निपट ही रही थी तब तक रुस-यूक्रेन के बीच यूद्ध शुरु हो गया। जिसने बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।
मंदी से क्या होगा असर
एक बार जब आर्थिक मंदी आ जाती है, तो हर कोई सर्वाइवल पर ध्यान देने लगता है। इंवेस्टर्स मार्केट से पैसा निकालना शरू कर देते हैं। कच्चे समान मंहगे होने लगते हैं। और डिमांड धीरे-धीरे कम होने लगती है। और किसी देश को चलाने के लिए डिमांड & सप्लाई का सही से काम करना जरूरी होता है। कंपनिया अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों को निकालने लगती है। लोगों के हाथ में खर्च करने के लिए पैसे नहीं होते, जिनके पास होते हैं वो आगे के लिए बचा कर रखना शुरू कर देते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर छोटे व्यापार पर पड़ता है।