भारत की अध्यक्षता में नई दिल्ली में चल रहे जी20 समिट में बने ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस (Global Biofuel Alliance) से आने वाले समय में बड़ा फायदा होने वाला है। भारतीय बायोगैस एसोसिएशन (आईबीए) का अनुमान है कि आने वाले तीन सालों में ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस से जी20 देशों के लिए 500 अरब अमेरिकी डॉलर के अवसर जेनरेट हो सकते हैं। भाषा की खबर के मुताबिक, आईबीए (Indian Biogas Association) ने कहा है कि यह अलायंस जी20 देशों के साथ पर्यावरण की दृष्टि से भी फायदे का सौदा साबित होगा।
कॉर्बन उत्सर्जन को कम करने में मददगार
खबर के मुताबिक, अन्य ऊर्जा विकल्पों की तुलना में जैव ईंधन उत्पादन में कम निवेश की जरूरत और कच्चे माल की आसान उपलब्धता को देखते हुए बिल्कुल कहा जा सकता है कि बायोगैस से बड़े अवसर पैदा हो सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सैद्धान्तिक रूप से जैव ऊर्जा/बायोगैस जीवाश्म ईंधन की पूरी तरह जगह ले सकता है। खासकर यह ट्रांसपोर्टेशन में कॉर्बन उत्सर्जन को कम कर सकता है। साल 2016 में जी20 ने रिन्युएबल इनर्जी पर एक स्वैच्छिक कार्ययोजना को अपनाया था। इसके तहत जी20 के सदस्य देशों को अपनी कुल ऊर्जा में रिन्युएबल इनर्जी के हिस्से को बढ़ाना था।
रिन्युएबल इनर्जी में भारत ने काफी काम किया
भारत की बात की जाए तो इसने कुल ऊर्जा मिश्रण में रिन्युएबल इनर्जी की हिस्सेदारी बढ़ाई है। आंकड़ों को देखा जाए तो यह पिछले छह साल में यह सालाना 22 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। भारत ने पिछले दशक में सोलर इनर्जी में 20 गुना ग्रोथ हासिल किया है। इस दौरान सोलर इनर्जी और पवन ऊर्जा (विंड इनर्जी) की सालाना ग्रोथ मोटे तौर पर क्रमशः 38 प्रतिशत और 30 प्रतिशत रही है। इसमें कहा गया है कि जैव ईंधन उद्योग को गति देने के लिए शुरुआत में 100 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत होगी। इसका मतलब यह हुआ कि अगले तीन साल में हर जी20 सदस्य देशों या मेंबर्स को 5-5 अरब डॉलर का निवेश करना होगा।
ट्रांसफर आसान बनाया जाना चाहिए
भारतीय बायोगैस एसोसिएशन (IBA) ने कहा कि जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuel Alliance) की सफलता के लिए जी20 देशों के बीच मशीनरी और उपकरणों के हस्तांतरण को आसान बनाया जाना चाहिए। जी20 देशों को इससे जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता घटाने में मदद मिलेगी। ऐसे में अगले तीन साल में उनका non-fossil fuel का इम्पोर्ट बिल अरबों डॉलर कम हो जाएगा।