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गणेश भक्तों ने पकिस्तान के दोस्त को लगाई बड़ी चपत, हो गया खेल खराब

पहले प्लास्टर ऑफ पेरिस, पत्थर, संगमरमर और अन्य वस्तुओं से बनी गणेश मूर्तियों को सस्ते दामों के कारण चीन से आयात किया जाता था।

Edited By: Alok Kumar @alocksone
Published on: August 31, 2022 14:54 IST
Ganesh Chatuthi - India TV Paisa
Photo:PTI Ganesh Chatuthi

गणेश भक्तों ने पकिस्तान के दोस्त चीन को बड़ी चपत लगाई है। दरअसल, गणेश उत्सव के दौरानी चीनी मुर्तियों का बड़े पैमाने पर भारत में आयात होता था लेकिन इस बार यह बिल्कुल नहीं हुआ है। गणेश की मूर्तियों की वजह से देशभर में चीन को लाखों का कारोबार मिलता है। ऐसे में मंदी की चपेम में चीन को बड़ी चपत लगी है। माना जा रहा है कि यह ट्रेड दिवाली में और देखने को मिलेगा। दिवाली में चीन के सामानों की बड़ी बिक्री होती है। इसमें लाइटिंग से लेकर मुर्तियां शामिल होती है।

चीनी सामानों के बहिष्कार के अभियान को फिर से जारी

गणेश उत्सव के 10 दिवसीय भव्य समारोह के साथ त्योहारी सीजन की शुरुआत हो चुकी है। जिससे इस साल बड़े कारोबारियों के लिए बड़ी उम्मीद जगी है। इस त्योहार के साथ, कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) ने एक बार फिर चीनी सामानों के बहिष्कार के अभियान को फिर से जारी रखा है। सीएआईटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.सी. भरतिया और महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक देश में हर साल 20 करोड़ से ज्यादा गणेश प्रतिमाएं खरीदी जाती हैं, जिससे अनुमानित कारोबार 300 करोड़ रुपये से ज्यादा का होता है। उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों से देश भर में बड़ी मात्रा में भगवान गणेश की पर्यावरण के अनुकूल मूर्तियों को स्थापित करने का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है।

सस्ते दामों के कारण चीन से आयात किया जाता था

पहले प्लास्टर ऑफ पेरिस, पत्थर, संगमरमर और अन्य वस्तुओं से बनी गणेश मूर्तियों को सस्ते दामों के कारण चीन से आयात किया जाता था, लेकिन पिछले दो सालों में सीएआईटी द्वारा चीनी सामानों के बहिष्कार के अभियान के कारण मूर्तियों का शून्य आयात हुआ है। देश भर के शहरों में अपने घरों में काम करने वाले स्थानीय शिल्पकार, कारीगर और कुम्हार अपने परिवार की महिलाओं को शामिल करते हुए मिट्टी और गाय के गोबर से मूर्तियां बनाते हैं, जिन्हें आसानी से विसर्जित कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के अनुकूल मूर्तियां बनाई जा रही हैं जिन्हें विसर्जित करने के बजाय पेड़ों और पौधों में मिला दिया जाता है, जिससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता है।

 

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