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घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाने की गारंटी नहीं है FTA, निर्यात बढ़ाने के लिए भी कारगर नहीं

दुनियाभर के देश एफटीए करने को बेताब हैं और इन समझौतों से निवेश बढ़ता है, ऐसा मानना गलत है।

Written By: Alok Kumar @alocksone
Updated on: November 20, 2022 15:08 IST
निर्यात - India TV Paisa
Photo:AP निर्यात

मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की चर्चा इन दिनों खूब सुनाई दे रही है। अब इसको लेकर शोध एवं रणनीति परामर्श कंपनी ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (जीटीआरआई) ने एक रिपोर्ट में कहा है कि मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) से जुड़े कुछ मिथकों के बारे में जानकारी होना जरूरी है। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा अभी माना जा रहा है कि एफटीए से निर्यात में तेजी से वृद्धि होती है। घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलता है। हालांकि, ये सही नहीं है। ये सब मिथक हैं: एफटीए से विश्व व्यापार संगठन कमजोर होता है, दुनियाभर के देश एफटीए करने को बेताब हैं और इन समझौतों से निवेश बढ़ता है, ऐसा मानना गलत है कि विश्व का ज्यादातर व्यापार एफटीए मार्ग से होते हैं बल्कि वास्तविकता यह है कि 20 प्रतिशत से भी कम विश्व व्यापार इस रास्ते से होता है।

एफटीए से निर्यात में बढ़ोतरी भी नहीं 

रिपोर्ट में कहा गया कि इस बात में कोई सचाई नहीं है कि दुनियाभर के देश एफटीए करने को उत्सुक हैं बल्कि वास्तविकता में इन समझौतों में मुख्य रूप से पूर्वी-एशियाई देशों की अधिक दिलचस्पी है जिन्होंने उत्पाद शुल्क में कमी की है या यह शुल्क खत्म ही कर दिया है। इसके मुताबिक, ‘‘प्रमुख औद्योगिक देश या क्षेत्र एफटीए बहुत ही चुनिंदा तरीके से करते हैं। मसलन अमेरिका ने यूरोपीय संघ, चीन, जापान, आसियान या भारत जैसी महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं के साथ ऐसा कोई समझौता नहीं किया है। यूरोपीय संघ ने 41 व्यापार समझौते किए हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर छोटे देशों और कच्ची सामग्री के आपूर्तिकर्ताओं के साथ है।’’ विश्व व्यापार में 83-85 प्रतिशत इन समझौतों से हटकर और डब्ल्यूटीओ के नियमों के मुताबिक होता है। एक मिथक यह है कि एफटीए से निर्यात में वृद्धि होती है।

एफटीए से हट कर रणनीति बनाने की जरूरत 

रिपोर्ट के मुताबिक, चूंकि 20 प्रतिश्त से भी कम विश्व व्यापार रियायती उत्पाद शुल्क पर हो रहा है ऐसे में भारत को 80 प्रतिशत व्यापार को इस मार्ग से हटकर बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त रणनीति की जरूरत होगी। रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘एफटीए पर हस्ताक्षर करने भर से निर्यात में वृद्धि की गारंटी नहीं मिल जाती। एफटीए के जरिये निर्यात में वृद्धि की संभावना तब कम हो जाती है जब साझेदार देश में आयात शुल्क कम होता है। इस लिहाज से देखा जाए तो सिंगापुर या हांगकांग में निर्यात बढ़ाने के लिए एफटीए विशेष लाभदायक नहीं होगा क्योंकि वहां आयात शुल्क है ही नहीं। वहीं मलेशिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ब्रुनेई के साथ व्यापार समझौते का लाभ चुनिंदा उत्पाद समूहों को ही मिलेगा क्योंकि इन देशों में ज्यादातर आयात पर शुल्क नहीं लगता। 

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