अमरिका से लेकर यूरोप तक इस समय बैंकिंग सेक्टर में हाहाकार मचा हुआ है। बढ़ती कर्ज की दरें, मंदी की मार और खराब कॉरपोरेट गवर्नेंस बैंकों के डूबने के केंद्र बिंदु में रहे हैं। पश्चिमी देशों में फैली इस बैंकिंग महामारी से भारतीय बैंक कितने सुरक्षित हैं, इसे लेकर अब भारत सरकार भी हरकत में आ गई है। शनिवार को ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों के साथ बातचीत कर मौजूदा स्थिति की समीक्षा की है।
इस बीच वित्त मंत्रालय की ओर से बैंकों को कर्ज पर निगाह रखने की सलाह दी गई है। वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से बड़े कर्जों पर समुचित नजर रखने और बड़ी कंपनियों के गिरवी रखे शेयरों के लिये पर्याप्त प्रावधान करने को कहा है। अमेरिका तथा यूरोप में कुछ बैंकों के विफल होने के बाद उत्पन्न वैश्विक वित्तीय हालात को देखते हुए मंत्रालय ने यह बात कही है।
सूत्रों के अनुसार, समय पर कदम उठाने के लिये गिरवी रखी प्रतिभूतियों को लेकर एकीकृत बाजार आंकड़े की जरूरत है। इसके अलावा, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ हाल की बैठक में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रमुखों से गिरवी रखे शेयरों समेत कंपनियों को दिये गये कर्ज का भी प्रबंधन करने को कहा गया था। सूत्रों ने कहा कि वित्त मंत्रालय ने यह भी कहा कि कि बड़ी कंपिनयों के ऋण खातों के दबाव-परीक्षण को बढ़ाना विवेकपूर्ण होगा।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को यह भी सलाह दी गई थी कि वे बड़ी और कॉरपोरेट जमा के बदले छोटी-छोटी जमा पर ध्यान दें और विवेकाधीन मूल्य निर्धारण प्रणाली से दूर रहें। वित्त मंत्री ने पिछले सप्ताह विभिन्न वित्तीय मानकों के आधार पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की समीक्षा की। उन्होंने बैंकों से ब्याज दर जोखिमों के बारे में सतर्क रहने और नियमित रूप से हालात को लेकर दबाव परीक्षण करने का आग्रह किया।