पिछले सात दशकों से भी ज्यादा समय से भारत में गरीबी खत्म करने के प्रयास जारी हैं। यह प्रयास अब रंग लाता दिख रहा है। एक प्रमुख अमेरिकी थिंक टैंक 'द ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन' के अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला और करण भसीन ने एक लेख में कहा कि भारत ने अत्यधिक गरीबी को खत्म कर दिया है। थिंक टैंक ने इसके लिए हाल में जारी 2022-23 के उपभोग व्यय के आंकड़ों का हवाला दिया। भाषा की खबर के मुताबिक, दोनों प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ने लेख में आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 2011-12 के बाद से वास्तविक प्रति व्यक्ति खपत 2.9 प्रतिशत प्रति वर्ष बढ़ी है। इस दौरान ग्रामीण वृद्धि 3.1 प्रतिशत और शहरी वृद्धि 2.6 प्रतिशत रही।
असमानता में भी अभूतपूर्व गिरावट
खबर के मुताबिक, इस लेख में कहा गया कि 2011-12 के बाद से शहरी और ग्रामीण असमानता में भी अभूतपूर्व गिरावट आई है। शहरी गिनी 36.7 से घटकर 31.9 हो गई, जबकि ग्रामीण गिनी 28.7 से घटकर 27.0 रह गई। गिनी सूचकांक आय वितरण की असमानता को दर्शाता है। अगर यह शून्य है तो इसका अर्थ है कि समाज में पूरी तरह समानता है। लेख में कहा गया है कि असमानता विश्लेषण के इतिहास में यह गिरावट अभूतपूर्व है। लेख में कहा गया है कि उच्च वृद्धि दर और असमानता में बड़ी गिरावट ने मिलकर भारत में गरीबी को खत्म कर दिया है।
हेडकाउंट गरीबी अनुपात भी घटा
गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी का अनुपात हेडकाउंट गरीबी अनुपात (एचसीआर) 2011-12 में 12.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में दो प्रतिशत रह गया। ग्रामीण गरीबी 2.5 प्रतिशत थी, जबकि शहरी गरीबी घटकर एक प्रतिशत रह गई। लेखकों ने कहा कि इन अनुमानों में सरकार द्वारा लगभग दो-तिहाई आबादी को दिए जाने वाले मुफ्त भोजन (गेहूं और चावल) और सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा शिक्षा को ध्यान में नहीं रखा गया है।
लेख में कहा गया है कि एचसीआर में गिरावट उल्लेखनीय है, क्योंकि अतीत में भारत को गरीबी के स्तर में इतनी कमी लाने के लिए 30 साल लगे थे, जबकि इस बार इसे 11 साल में हासिल किया गया है। अर्थशास्त्रियों ने कहा कि आधिकारिक आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय तुलनाओं में आमतौर पर परिभाषित अत्यधिक गरीबी को खत्म कर दिया है।