Highlights
- पीएम मोदी ने बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का किया उद्घाटन
- 2014 के बाद से सड़क बनाने के क्षेत्र में रिकॉर्ड काम
- संपूर्ण भारत को स्वर्णिम चतुर्भुज की नीति से जोड़ने की 'अटल' कोशिश
Explained: भारत के परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने 3 अगस्त 2022 को राज्यसभा में बताया था कि सरकार अगले तीन वर्षों में 26 नए ग्रीन एक्सप्रेसवे (Green Expressway) बनाने जा रही है। भारत का रोड इंफ्रास्ट्रक्चर (Roadways Infrastructure) 2024 तक अमेरिका (America) जैसा हो जाएगा। तब संकरी रास्तों की बात पुरानी हो जाएगी। हम इस साल आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहे हैं। भारत सड़क के क्षेत्र में कितना विकास कर पाया? पगडंडियों से निकलकर एक्सप्रेसवे तक का सफर कैसे तय किया? अभी और कितना काम करने की जरूरत है? उसके बारे में हम आपको विस्तार से बताएंगे।
पीएम मोदी ने बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का किया उद्घाटन
भारत में हाल के दिनों में बन रहे एक्सप्रेसवे का काम भी एक्सप्रेस की रफ्तार में चल रहा है। 16 जुलाई 2022 को पीएम मोदी (PM Modi) ने जिस बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे (Bundelkhand Expressway) का उद्घाटन किया था वह रिकॉर्ड 28 महीने में बनकर तैयार हुआ था। ये यूपी का चौथा एक्सप्रेसवे है। इससे पहले यमुना एक्सप्रेसवे, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे और पूर्वांचल एक्सप्रेसवे शुरु हो चुके हैं। यूपी में आप सिर्फ एक्सप्रेसवे से 1104 किलोमीटर की दूरी तय कर सकते हैं। इसके अलावा और भी दर्जनों ऐसे एक्सप्रेसवे हैं जो यूपी और बाकी के राज्यों में बनाए जा रहे हैं।
भारत में तेजी से हो रहा है सड़कों का निर्माण
केंद्रीय परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नीतिन गडकरी ने एक बयान में कहा था कि सरकार साल 2025 तक नेशनल हाइवे (National Highway) के नेटवर्क को दो लाख किलोमीटर तक पहुंचाने की दिशा में लगातार काम कर रही है। इंडियन रोड कांग्रेस (IRC) के एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने यह बात कही थी। गडकरी ने बुनियादी ढांचे के विकास में गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए नए विचारों, शोध निष्कर्षों और प्रौद्योगिकियों के लिए ‘इनोवेशन बैंक’ की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा।
2014 के बाद से सड़क बनाने के क्षेत्र में रिकॉर्ड काम
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पिछले आठ साल के दौरान नेशनल हाईवे की लंबाई में काफी वृद्धि हुई है, जो 2014 में 91,000 किलोमीटर थी। वह अब 50% से अधिक बढ़कर 1.47 लाख किलोमीटर के करीब पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि सरकार पूर्वोत्तर राज्यों में विकास के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और नेशनल हाईवे से लेकर बुनियादी ढांचा के विकास के क्षेत्र में लगातार काम कर रही है। यही कारण है कि 2,344 किलोमीटर की दूरी का नेशनल हाईवे तैयार हो पाया है, जिसे बनाने में सरकार को 45,000 करोड़ रुपये की लागत आई है।
एक इकॉनमिक सर्वे में सामने आया कि 2013-14 के बाद राष्ट्रीय राजमार्गों/सड़कों के निर्माण में लगातार वृद्धि हुई है। 2019-20 में 10,237 किलोमीटर की तुलना में 2020-21 में 13,327 किलोमीटर का निर्माण किया गया है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 30.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है, "बुनियादी ढांचा किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है।" इसमें बताया गया कि 2021-22 (सितंबर तक) में, 3,824 किलोमीटर सड़क नेटवर्क का निर्माण किया गया था।
संपूर्ण भारत को स्वर्णिम चतुर्भुज की नीति से जोड़ने की 'अटल' कोशिश
सड़कों को किसी भी अर्थव्यवस्था की रक्त-शिरा माना जाता है। आज आप 22 घंटे से भी कम समय में चेन्नई से मुंबई पहुंच सकते हैं, 24 घंटे में दिल्ली से मुंबई पहुंच सकते हैं, लेकिन आज से दो दशक पहले यह संभव नहीं था। ये नतीजा है देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी की दूरदृष्टि का। वे ही देश के पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने देश के आर्थिक विकास में सड़कों का महत्व समझा और देश में सड़कों के सबसे बड़े प्रोजेक्ट स्वर्णिम चतुर्भुज की शुरूआत की। यह विश्व की पांचवी सबसे बड़ी सड़क परियोजना थी। 2012 में पूरे हुए इस प्रोजेक्ट ने देश में वाहनों की ही नहीं बल्कि तरक्की की रफ्तार बढ़ाने में भी बड़ा योगदान दिया है।
6 अरब का आया था खर्च
वाजपेयी सरकार ने देश के चारों महानगरों को आपस में जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज योजना का खाका तैयार किया था। 1999 में इसकी योजना बनकर तैयार हुई। इसके तहत देश के चार बड़े महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई को चार से छह लेन वाले राजमार्गों से जोड़ना था। 2002 में इस परियोजना की शुरूआत की गई। योजना के तहत 5,846 कि.मी. लंबे राजमार्गों का निर्माण किया गया। योजना पर 6 खरब रुपए का खर्च आया।
स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना से देश के 13 राज्यों को सीधा फायदा हुआ। इसमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्रप्रेदश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजारत, हरियाणा शामिल हैं। इसमें सबसे लंबी सड़कों का निर्माण आंध्रप्रदेश में हुआ। यहां 1014 किमी लंबी सड़कें बनीं।
गांव तक पहुंचाया गया सड़क
भारत के गांवों में देश की आत्मा बसती है, यानि जब तक गावों का विकास नहीं होगा तब तक देश का विकास नहीं माना जाएगा। कहते हैं ना किसी भी क्षेत्र का विकास करना है तो उसे बेहतर सड़कों से जोड़ दो, भारत ने भी यही किया। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क परियोजना के माध्यम से उसने अपने ज्यादातर गांवो को जोड़ दिया। केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही इस योजना की शुरुआत साल 2000 में की गई थी। इस योजना का मकसद ऐसे ग्रामीण इलाकों में सड़कों का नेटवर्क तैयार करना था जो राज्य से कटे रहते हैं। इन सड़कों के निर्माण में केंद्र इस योजना के चलते राज्यों की मदद करता है। हालांकि, भारत सरकार के प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क परियोजना की वेबसाइट पर मौजूद ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अभी देश के लगभग 1.67 लाख बस्तियों में सड़कों की सुविधा मौजूद नहीं है। वहीं इस योजना के तहत कनेक्टिविटी के लिए सरकार लगभग 3.71 लाख किलोमीटर नई सड़कों के निर्माण के साथ-साथ 3.68 लाख किलोमीटर सड़कों को अपग्रेड करने का काम भी करेगी।
60:40 के अनुपात में केंद्र और राज्यों के बीच खर्च होगा साझा
वहीं अगर इस योजना के माध्यम से हुए कामों को देखें तो साल 2013 में केंद्र सरकार ने पीएमजीएसवाई (PMGSY)के दूसरे चरण की शुरुआत के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इस चरण के तहत, गांवों को जोड़ने के लिए 50,000 किलोमीटर लंबी सड़कों को अपग्रेड किया गया था। जबकि, जुलाई 2019 में इस योजना के तीसरे चरण को केंद्र सरकार से मंजूरी मिल गई थी। इस चरण में पूरे भारत में 1.25 लाख किलोमीटर सड़कों को चौड़ा करने और उन्हें सुधारने पर विशेष ध्यान दिया गया था। तीसरे चरण की अवधि साल 2024-25 तक निर्धारित की गई है। अनुमान है कि इस चरण में 80,250 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जिसे 60:40 के अनुपात में केंद्र और राज्यों के बीच साझा किया जाएगा।