Inflation: देश की जनता भीषण महंगाई की मार झेल रही है। हालांकि जुलाई के आंकड़ों में महंगाई कुछ घटी जरूर है, लेकिन अभी भी यह रिजर्व बैंक के तय मानकों से बहुत अधिक है। रिजर्व बैंक गवर्नर भी अगले साल की पहली तिमाही में महंगाई काबू में आने की बात कह चुके हैं। वहीं अब रिजर्व बैंक के एक लेख में महंगाई को काबू में लाने के उपाय के बारे में चर्चा की गई है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख के अनुसार देश में महंगाई लगातार उच्चस्तर पर बनी हुई है और आने वाले समय में इसे काबू में लाने के लिये उपयुक्त नीतिगत कदम की जरूरत है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई में नरम होकर 6.71 प्रतिशत रही है। मुख्य रूप से खाने का सामान सस्ता होने से महंगाई घटी है। रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये नीतिगत दर यानी रेपो में लगातार तीन मौद्रिक नीति समीक्षा में 1.40 प्रतिशत की वृद्धि की है। महंगाई दर लगातार सात महीने से केंद्रीय बैंक के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है।
महंगाई दर घटना राहत की बात
अिर्थव्यवस्था की स्थिति पर रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल देबव्रत पात्रा की अगुवाई वाली टीम के लिखे लेख में कहा गया है, ‘‘हाल के समय में संभवतया सबसे सुखद घटनाक्रम जुलाई में महंगाई दर का जून के मुकाबले 0.30 प्रतिशत नरम होना है। वहीं 2022-23 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में यह औसतन 7.3 प्रतिशत से 0.60 प्रतिशत कम हुई है।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘इससे हमारी इस धारणा की पुष्टि हुई है कि मुद्रास्फीति अप्रैल, 2022 में चरम पर थी।’’
अगले साल 5 फीसदी से नीचे आएगी महंगाई
लेख के अनुसार, ‘‘मुद्रास्फीति की जो स्थिति बनी है, वह कमोबेश हमारे अनुमान के अनुरूप है अगर अनुमान सही रहा तो मुद्रास्फीति अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सात प्रतिशत से घटकर पांच प्रतिशत पर आ जाएगी, जो केंद्रीय बैंक के संतोषजनक स्तर के अनुरूप होगा। सरकार ने रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत से छह प्रतिशत के बीच रखने की जिम्मेदारी दी है।
आयातित महंगाई का जोखिम
रिजर्व बैंक के लेख में कहा गया है कि आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम बना हुआ है। इसके अलावा उत्पादकों की ओर से कच्चे माल की लागत का भार ग्राहकों पर भी डालने की आशंका है। लेकिन यह इस बात पर निर्भर है कि उत्पादकों के पास मूल्य निर्धारण और मजदूरी के मामले में भार ग्राहकों पर डालने की कितनी क्षमता है। हालांकि, कुछ जोखिम कम हुए हैं। इसमें जिंसों खासकर कच्चे तेल के दाम में कमी, आपूर्ति संबंधी दबाव कम होना और मानसून का बेहतर होना शामिल हैं।
खतरा अभी टला नहीं
लेख में कहा गया है, ‘‘मुद्रास्फीति में कमी जरूर आई है लेकिन यह अब भी उच्चस्तर पर है। इससे आने वाले समय में इसे काबू में लाने के लिये उपयुक्त नीतिगत कदम की जरूरत होगी।’’ इसमें यह भी कहा गया है कि वैश्विक वृद्धि की संभावना मासिक आधार पर कमजोर हुई है। लेख के अनुसार, देश में आपूर्ति की स्थिति में सुधार हुआ है। हाल में मानसून के बेहतर होने के साथ विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में तेजी देखी जा रही है।
त्योहारी मांग पर सब निर्भर
त्योहार आने के साथ गांवों समेत शहरों में ग्राहकों का भरोसा बढ़ना चाहिए। बुवाई गतिविधियां रफ्तार पकड़ रही हैं। केंद्र सरकार के मजबूत पूंजीगत व्यय से निवेश गतिविधियों को समर्थन मिल रहा है। भाषा यदि उत्पादकों को मूल्य निर्धारण शक्ति और मजदूरी हासिल हो जाती है तो आयातित मुद्रास्फीति दबाव बिंदु अत्यधिक जोखिम बने रहते हैं।