Highlights
- IMF ने पाकिस्तान के लिए बीते 3 साल से बंद करीब 6 अरब डॉलर की मदद का बांध खोल दिया
- श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि भारतीय सहायता ‘‘धर्मार्थ दान’’ नहीं है
- श्रीलंका में भोजन, दवा, रसोई गैस और ईंधन जैसी आवश्यक वस्तुओं की भारी किल्लत
आर्थिक रूप से दीवालिया हो चुके पाकिस्तान के लिए आज का दिन किसी त्योहार से कम नहीं है। चीन के पिछलग्गू रहे पाकिस्तान की तिजोरी लगभग खाली हो चुकी है, तेल से लेकर राशन तक खरीदने के लिए देश के हाथ तंग हैं। लेकिन बुधवार को आखिरकार दुनिया का सबसे बड़ा बैंक आईएमएफ खुश हुआ और पाकिस्तान सरकार के लिए बीते 3 साल से बंद करीब 6 अरब डॉलर की मदद का बांध खोल दिया। साथ ही अरब देशों से रुकी फंडिंग भी मिल सकेगी।
शहबाज शरीफ की सरकार इस बड़ी राहत पर अपनी पीठ थपथपा रही है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की बड़ी जीत माना है। पाकिस्तान को पहले भी कर्ज लेकर घी पीने का शौक रहा है, तो ऐसे में देश के हुक्मरानों के हाथ में मानों 6 अरब डॉलर का नया खजाना मिल गया है। उस पर अब चीन और अरब देशों से उसे अतिरिक्त फंडिंग भी मिल सकेगी।
श्रीलंका की सोच पाकिस्तान के उलट
पाकिस्तान जहां आईएमएफ के कर्ज को लेकर पटाखे फोड़ रहा है, वहीं श्रीलंका की सोच इसके उलट है। श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने बुधवार को संसद में कहा कि भारत द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता ‘‘धर्मार्थ दान’’ नहीं है, हमें इसकी एक एक पाई चुकानी हैं। उन्होंने कहा कि इन ऋणों को चुकाने की योजना होनी चाहिए।
भारत से लिया 4 अरब डॉलर का कर्ज
विक्रमसिंघे ने संसद को बताया, ‘‘हमने भारतीय ऋण सहायता के तहत चार अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज लिया है। हमने अपने भारतीय समकक्षों से अधिक ऋण सहायता का अनुरोध किया है, लेकिन भारत भी इस तरह लगातार हमारा साथ नहीं दे पाएगा। यहां तक कि उनकी सहायता की भी अपनी सीमाएं हैं। दूसरी ओर, हमारे पास भी इन ऋणों को चुकाने की योजना होनी चाहिए।’’
श्रीलंका जाएगा भारतीय दल
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन की अगुवाई में भारत सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल बृहस्पतिवार को यहां आएगा। अपनी यात्रा के दौरान भारतीय प्रतिनिधिमंडल श्रीलंका की वित्तीय स्थिति का आकलन करने और यह समझने की कोशिश करेगा कि क्या इस देश को वित्तीय सहायता की एक और किस्त देने की जरूरत है।
श्रीलंका में गहराया संकट
श्रीलंका 1948 में अपनी आजादी के बाद से सबसे भीषण आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, जिसके चलते वहां भोजन, दवा, रसोई गैस और ईंधन जैसी आवश्यक वस्तुओं की भारी किल्लत हो गई है। उन्होंने हमारी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से पतन का सामना करना पड़ा है। आज हमारे सामने यही सबसे गंभीर मुद्दा है। इन मुद्दों को केवल श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करके ही सुलझाया जा सकता है। ऐसा करने के लिए, हमें सबसे पहले विदेशी मुद्रा भंडार के संकट का समाधान करना होगा।’