रोजगार के मुद्दे पर अलोचना झेल रही मोदी सरकार ने अपने इकोनॉमी सर्वे में इस बात को नकारा है। इकोनॉमी सर्वे में आंकड़ों के जरिये बताया गया है कि छोटी से लेकर बड़ी कंपनियों में नई नौकरियों में वृद्धि हुई है। वहीं, कृषि क्षेत्र में भी लोगों को काम मिला है। इससे माइग्रेशन में कमी आई है। इकोनॉमी सर्वे के अनुसार, रोजगार सृजन के मामले में, क्वार्टरली श्रम बल सर्वेक्षण शहरी रोजगार और ग्रामीण भारत सहित पूरे देश के लिए सालाना डेटा मिलता है। इस सर्वे से पता चला है कि कृषि क्षेत्र में रोजगार में वृद्धि होने से रिवर्स माइग्रेशन हुआ है। यानी लोग शहरों से गांवों में लौटे हैं। साथ ही ग्रामीण भारत के श्रम बल में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है।
कारखानों में नौकरियां तेजी से बढ़ीं
सर्वेक्षण में लगभग 2.0 लाख भारतीय कारखानों में कामकाजी लोगों का डेटा है। 2013-14 और 2021-22 के बीच कारखानों में कुल नौकरियों की संख्या में सालाना 3.6% की वृद्धि हुई है। संतोषजनक बात यह है कि सौ से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले कारखानों में वे छोटे कारखानों (जिनमें सौ से कम कर्मचारी हैं) की तुलना में 4.0% अधिक तेजी से बढ़े हैं। इस अवधि में भारतीय कारखानों में रोजगार 1.04 करोड़ से बढ़कर 1.36 करोड़ हो गया है।
आर्थिक झटके से रोजगार पर असर नहीं
इकोनॉमी सर्वे में कहा गया है कि भारत को एक के बाद एक दो बड़े आर्थिक झटके लगे। बैंकिंग सिस्टम में खराब कर्ज और कॉरपोरेट कर्ज का उच्च स्तर और कोविड महामारी दूसरा झटका था। यह पहले झटके के तुरंत बाद आया। इसके बाजवूद भारतीय अर्थव्यवस्था ने शानदार प्रदर्शन किया है और रोजगार के मौके बढ़े हैं। इसलिए, यह निष्कर्ष निकालना मुश्किल है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की रोज़गार सृजन की क्षमता संरचनात्मक रूप से कमज़ोर है। भारतीयों की उच्च और बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा करने और 2047 तक विकसित भारत की यात्रा को पूरा करने के लिए भारत को पहले से कहीं अधिक समझौते की आवश्यकता है। सर्वे में प्राइवेट सेक्टर की अहम भूमिका बताई गई है। रोजगार सृजन से लेकर जीडीपी का साइज बड़ा करने में प्राइवेट सेक्टर को आगे अना होगा।