पेट्रोल एवं डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती कर बीते शनिवार को सरकार ने आम लोगों को बड़ी राहत दी है। लेकिन सरकार की यह राहत महंगाई की मार झेल रही आम जनता के लिए महंगाई के नए द्वार भी खोल सकती है। सरकार के इस कदम से राजकोषीय घाटा 6.4 प्रतिशत के लक्ष्य से पीछे रह जाने की आशंका है। इसका सीधा मतलब यह है कि यह सरकार की खराब आर्थिक सेहत का संकेत है, इससे आगे चलकर स्थिति बिगड़ सकती है जिससे सरकार को ज्यादा उधारी लेनी होगी।
पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में आठ रुपये प्रति लीटर और डीजल पर छह रुपये प्रति लीटर की कटौती से सरकारी खजाने पर करीब एक लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने एक रिपोर्ट में कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से सरकार को मिलने वाले लाभांश के बजट अनुमान से कम रहने और खाद्य एवं उर्वरक सब्सिडी पर अतिरिक्त व्यय करने की जरूरत को देखते हुए राजकोषीय घाटे के लिए जोखिम बढ़ जाएगा।
इक्रा ने कहा, ‘‘हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6.5 प्रतिशत रह सकता है जबकि इसका बजट अनुमान 6.4 प्रतिशत का है।’’ अगर ऐसा होता है तो वह राजकोषीय घाटे में क्रमिक रूप से कमी लाने के लक्ष्य के उलट होगा। सरकार ने राजकोषीय घाटे को वर्ष 2025-26 तक 4.5 प्रतिशत के नीचे लाने का लक्ष्य रखा है।
एक्यूट रेटिंग्स एंड रिसर्च की मुख्य विश्लेषण अधिकारी सुमन चौधरी ने कहा कि पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क कटौती के अलावा इस्पात उत्पादों पर आयात-निर्यात की दरों में बदलाव करने से भी राजकोषीय स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि आगे चलकर स्थिति बिगड़ सकती है जिससे सरकार को ज्यादा उधारी लेनी होगी।
बैंक ऑफ अमेरिका ग्लोबल रिसर्च की एक रिपोर्ट में भी कहा गया कि सरकार की तरफ से पिछले कुछ दिनों में उठाए गए कदमों से राजकोषीय घाटे पर दबाव बढ़ेगा। इसके मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटा 0.40-0.50 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।