इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक के खर्च वाली 335 प्रोजेक्ट्स की लागत तय अनुमान से 4.46 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा बढ़ गई है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी और अन्य कारणों से इन प्रोजेक्ट की लागत बढ़ी है। सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक की लागत वाली इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की निगरानी करता है। मंत्रालय की जनवरी, 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की 1,454 प्रोजेक्ट्स में से 335 की लागत बढ़ गई है, जबकि 871 प्रोजेक्ट देरी से चल रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इन 1,454 प्रोजेक्ट्स के क्रियान्वयन की मूल लागत 20,59,065.57 करोड़ रुपये थी, लेकिन अब इसके बढ़कर 25,05,248.43 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है।
प्रोजेक्ट्स की लागत 21.67 प्रतिशत बढ़ी
इससे पता चलता है कि इन प्रोजेक्ट की लागत 21.67 प्रतिशत यानी 4,46,182.86 करोड़ रुपये बढ़ गई है। रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी, 2023 तक इन प्रोजेक्ट पर 13,53,875.70 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, जो कुल अनुमानित लागत का 54.04 प्रतिशत है। हालांकि, मंत्रालय ने कहा है कि यदि प्रोजेक्ट के पूरा होने की हालिया समयसीमा के हिसाब से देखें तो देरी से चल रही प्रोजेक्ट की संख्या कम होकर 703 पर आ जाएगी। वैसे इस रिपोर्ट में 309 परियोजनाओं के चालू होने के साल के बारे में जानकारी नहीं दी गई है।
इन कारणों से प्रोजेक्ट्स पूरा करने में देरी
रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी से चल रही 871 प्रोजेक्ट्स में से 169 प्रोजेक्ट एक महीने से 12 महीने, 157 प्रोजेक्ट्स 13 से 24 महीने की, 414 प्रोजेक्ट्स 25 से 60 महीने की और 131 प्रोजेक्ट 61 महीने या अधिक की देरी से चल रही हैं। इन 871 परियोजनाओं में हो रहे विलंब का औसत 39.69 महीने है। इन प्रोजेक्ट्स में देरी के कारणों में भूमि अधिग्रहण में विलंब, पर्यावरण और वन विभाग की मंजूरियां मिलने में देरी और बुनियादी संरचना की कमी प्रमुख है। इनके अलावा प्रोजेक्ट का वित्तपोषण, विस्तृत अभियांत्रिकी को मूर्त रूप दिये जाने में विलंब, प्रोजेक्ट की संभावनाओं में बदलाव, निविदा प्रक्रिया में देरी, ठेके देने व उपकरण मंगाने में देरी, कानूनी व अन्य दिक्कतें, अप्रत्याशित भू-परिवर्तन आदि की वजह से भी इन प्रोजेक्ट्स में देरी हुआ है।