कर्मचारियों की सैलरी को लेकर नियोक्ताओं का रवैया काफी बदल चुका है। कंपनियां किसी भी शहर में जीवन-यापन पर आने वाली लागत को ध्यान में रखकर अब किसी भी पेशेवर का वेतन तय नहीं करती हैं। एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। कंसल्टेंट कंपनी केपीएमजी के एक सर्वेक्षण के मुताबिक, 10 क्षेत्रों की 40 कंपनियों के करीब 95 प्रतिशत मानव संसाधन अधिकारियों और प्रतिभा तलाश विभाग के प्रमुखों ने यह माना कि भारतीय शहरों में जीवन-यापन की लागत में अंतर उनके वेतन निर्धारण संबंधी निर्णयों को प्रभावित नहीं करता है।
पहले मिलता था भत्ता
खबर के मुताबिक, पहले महानगरों या बड़े शहरों में रहने पर आने वाली ऊंची लागत की भरपाई के लिए कर्मचारियों को एक तरह का भत्ता दिया जाता था। लेकिन मानव संसाधन प्रमुखों का कहना है कि अब बहुत कम नियोक्ता ही यह भत्ता दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश भर में समान पदों के लिए वेतन दायरा कमोबेश एक जैसा ही है। हालांकि कर्मचारी जीवन-यापन की लागत का मूल्यांकन करते समय आवासीय किराया, संपत्ति सूचकांक, स्थानीय क्रय शक्ति और वस्तुओं, परिवहन जैसी जरूरी चीजों पर आने वाली कुल लागत पर विचार करते हैं।
पुणे सबसे बेहतर शहर
कंपनियों के नियोक्ता अधिकारियों के बीच फरवरी और मार्च में कराए गए सर्वेक्षण के मुताबिक, सुरक्षा के मामले में पुणे सबसे बेहतर शहर है। इसमें कहा गया कि चेन्नई, नवी मुंबई और पुणे सुरक्षा के मामले में शानदार हैं और सुरक्षित वातावरण चाहने वालों को आकर्षित करते हैं। पीटीआई की खबर के मुताबिक, सर्वेक्षण में कहा गया कि सुरक्षा के अलावा जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में संपर्क सुविधा, आवागमन पर लगने वाला समय, स्वास्थ्य देखभाल और वायु गुणवत्ता शामिल हैं।
सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, गुरुग्राम, नवी मुंबई और नोएडा जैसे शहरों में प्रतिभाओं की तलाश करने वाली कंपनियां बहुत संतुष्ट हैं। उनका मानना है कि ऐसे शहरों में कर्मचारियों की नौकरी छोड़ने की दर कम है।