होम बायर्स के संगठन, फोरम फॉर पीपुल्स कॉलेक्टिव अफर्ट्स(एफपीसीई) ने सुझाव दिया है कि रेजिडेंशियल प्रोजेक्ट पूरा नहीं करने वाले बिल्डर पर आजीवन प्रतिबंध लगानी चाहिए। साथ ही फंड की हेराफेरी और प्रोजेक्ट को वित्तीय रूप से कमजोर करने के कारणों का पता लगाने के लिए फॉरेंसिक ऑडिट की जानी चाहिए। एफपीसीई के अध्यक्ष अभय उपाध्याय ने अटकी पड़ी परियोजनाओं पर गठित समिति के चेयरमैन अमिताभ कांत को लिखे पत्र में देशभर में फंसी पड़ी परियोजनाओं को पटरी पर लाने तथा उन्हें पूरा करने के लिये उपाये सुझाये हैं। समिति ने अटकी परियोजनाओं से जुड़े मुद्दों पर विचार के लिये आठ मई को दूसरी बैठक की।
14 सदस्यीय समिति का गठन किया गया
केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने 31 मार्च को आदेश में नीति आयोग के पूर्व मुख्य कार्यपालक अधिकारी अमिताभ कांत की अध्यक्षता में 14 सदस्यीय समिति का गठन किया था। समिति को रियल एस्टेट की अटकी पड़ी परियोजनाओं से संबंधित मुद्दों पर गौर करने और उसके पूरा होने के उपायों के बारे में सुझाव देने की जिम्मेदारी दी गयी। उपाध्याय ने पत्र में सुझाव दिया कि पांच साल से अधिक देरी वाली या पूर्ण रूप से फंसी परियोजनाओं की पहचान के लिये अखिल भारतीय स्तर पर अभियान चलाया जाना चाहिए। सभी आवश्यक विवरणों के साथ ऐसे प्रोजेक्ट की राज्यवार सूची बनाई जानी चाहिए। उन्होंने लिखा है कि परियोजनाओं की पहचान करने के बाद, ऐसी सभी परियोजनाओं को वित्तीय रूप से व्यावहारिक, वित्तीय रूप से अव्यावहारिक और धन की कमी के अलावा अन्य कारणों से रुकी हुई परियोजनाओं में वर्गीकृत किया जाना चाहिए।
कंपनी के डायरेक्टर को बाहर करने का सुझाव
उपाध्याय ने सुझाव दिया है कि लंबे समय से लंबित/रुकी हुई परियोजनाओं को पूरा करने के लिये प्रोजेक्ट के डायरेक्टर को पूरी तरह से हटा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि परियोजना को नए डायरेक्टर को दिया जाना चाहिए। सिर्फ उन मामलों को छोड़कर जिनमें मूल प्रवर्तक की भागीदारी के बिना परियोजना पूरी नहीं हो सकती है। रेरा (रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण) के तहत गठित केंद्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य की भी भूमिका निभा रहे उपाध्याय ने कहा, ‘‘ऐसी अटकी परियोजनाओं के प्रवर्तकों को आवास बिक्री से जुड़ी किसी भी रियल एस्टेट परियोजनाओं से जुड़ने पर पाबंदी लगायी जानी चाहिए या काली सूची में डालना चाहिए।’’