बजट से पहले रिसाइक्लिंग इंडस्ट्री के रेगुलेटर एआई ने सरकार से एल्युमीनियम कबाड़ पर आयात शुल्क हटाने की मांग की है। वित्त मंत्री से यह अपील करते हुए एआई ने कहा कि इससे उद्योग में स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। भाषा की खबर के मुताबिक, मैटेरियल रिसाइक्लिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एमआरएआई) के मुताबिक, एल्युमीनियम कबाड़ (स्क्रैप) की रिसाइक्लिंग प्रक्रिया से प्रति टन उत्पादन पर सिर्फ तीन लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होता है, जबकि स्मेल्टर के जरिये एक मीट्रिक टन एल्युमीनियम के उत्पादन पर 14 टन कार्बन उत्सर्जन होता है। इसमें बिजली आपूर्ति के लिए कोयला आधारित क्षमता बनाए रखना शामिल है।
आयात शुल्क 2.5 प्रतिशत है
खबर के मुताबिक, एआई ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लिखे पत्र में कहा कि भारतीय एल्युमीनियम रिसाइक्लिंग उद्योग के सामने सबसे बड़ी चुनौती एल्युमीनियम कबाड़ पर 2.5 प्रतिशत आयात शुल्क है। यह एल्युमीनियम रिसाइक्लिंग के लिए एक प्रमुख कच्चा माल है और सरकार को इसे तब तक शून्य करना चाहिए जब तक कि घरेलू बाजार में गुणवत्तापूर्ण सामग्री (कबड़ा) पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न हो जाए। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को संसद में वित्त वर्ष 2024-25 के लिए पूर्ण केंद्रीय बजट पेश करेंगी।
एल्यूमीनियम की मांग काफी अधिक बढ़ेगी
कई देशों ने कबाड़ (स्क्रैप) के महत्व को समझा कि यह प्रकृति में पुनर्चक्रणीय (रिसाइक्लेबल) होने के कारण जारी है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की अनुमानित उच्च वृद्धि और महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचे के विकास के कारण अगले कुछ सालों में एल्यूमीनियम की मांग काफी अधिक होने वाली है। एआई ने कहा कि भारत में एल्युमीनियम उत्पादन में एल्यूमीनियम रिसाइक्लिंग एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है, क्योंकि इसमें प्राथमिक एल्युमीनियम के उत्पादन की तुलना में बहुत कम ऊर्जा की जरूरत होती है।
आयात शुल्क लगाना करा सकता है नुकसान
रिसाइक्लिंग इंडस्ट्री के रेगुलेटर एआई के वरिष्ठ उपाध्यक्ष धवल शाह ने कहा कि एल्युमीनियम कबाड़ पर आयात शुल्क लगाना पीछे की तरफ ले जाने वाला साबित हो सकता है और इससे जारी लक्ष्यों तक पहुंचने के हमारे प्रयासों में कमी आएगी। निकाय ने तांबा और पीतल कबाड़ पर भी शून्य शुल्क की मांग की है, जिन पर वर्तमान में 2.5 प्रतिशत शुल्क लगता है। जस्ता और सीसा पर पांच प्रतिशत आयात शुल्क है।