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घटिया आयोडीन युक्त नमक मामले में टाटा केमिकल्स को बड़ी राहत, हटा जुर्माना, जानें पूरा मामला

बॉम्बे हाई कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले के बाद टाटा केमिकल्स और अन्य कंपनियों को जुर्माना नहीं भरना होगा। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आरएफएल ने स्पष्ट रूप से 2011 के नियमों में निर्धारित समयसीमा का पालन नहीं किया।

Edited By: Sourabha Suman @sourabhasuman
Updated on: May 14, 2024 15:05 IST
कोर्ट ने सभी अपीलकर्ताओं को दोषमुक्त करार दिया।- India TV Paisa
Photo:TATA CHEMICALS कोर्ट ने सभी अपीलकर्ताओं को दोषमुक्त करार दिया।

टाटा केमिकल्स लिमिटेड और अन्य कंपनियों को घटिया आयोडीन युक्त नमक बनाने व बिक्री करने के एक मामले में बड़ी राहत मिली है। बंबई हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने 2016 में महाराष्ट्र के बुलढाणा में खाद्य सुरक्षा अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा जारी उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें टाटा केमिकल्स लिमिटेड और दूसरी कंपनियों पर घटिया आयोडीन युक्त नमक बनाने व बिक्री करने के लिए जुर्माना लगाया गया था। पीटीआई की खबर के मुताबिक, अब इन कंपनियों को जुर्माना नहीं देना होगा।

आदेश के खिलाफ अपील

खबर के मुताबिक, न्यायमूर्ति अनिल एल.पानसरे ने अपने आदेश में भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को भविष्य में ऐसे मामलों में प्रक्रियात्मक अनुपालन और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उचित सलाह या सर्कुलर जारी करने का भी निर्देश दिया। टाटा केमिकल्स लिमिटेड और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य से जुड़े मामले में खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 की धारा 71(6) के तहत 13 अक्टूबर, 2016 के आदेश के खिलाफ अपील की गई थी। अपील टाटा केमिकल्स लिमिटेड और अन्य ने की थी।

कई गंभीर विसंगतियों और प्रक्रियात्मक खामियां दिखीं

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में मामले में कई गंभीर विसंगतियों और प्रक्रियात्मक खामियों को रेखांकित किया। इसमें पाया गया कि खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट जिसमें प्रोडक्ट को गलत ब्रांड बताया गया, उसका अपीलकर्ताओं ने विरोध किया। इसके बाद मामले को आगे के विश्लेषण के लिए रेफरल फूड लेबोरेटरी (आरएफएल) को भेजा गया। आदेश में कहा गया है कि आरएफएल की रिपोर्ट यह निष्कर्ष निकाला गया कि उत्पाद घटिया है लेकिन प्रारंभिक रिपोर्ट से इसके लिए पर्याप्त तर्क या औचित्य प्रदान नहीं किए गए। पारदर्शिता की इस कमी से आरएफएल के निष्कर्षों की वैधता और प्रक्रिया की समग्र अखंडता पर सवाल उठते हैं।

निर्धारित समयसीमा का पालन नहीं हुआ

न्यायमूर्ति पानसरे ने आदेश में कहा कि आरएफएल ने स्पष्ट रूप से 2011 के नियमों में निर्धारित समयसीमा का पालन नहीं किया। इस तरह रिपोर्ट में अनिवार्य प्रावधानों का अनुपालन नहीं हुआ। ऐसी रिपोर्ट के आधार पर जुर्माना नहीं लगाया जा सकता। न्यायनिर्णय अधिकारी और प्राधिकरण ने भी अस्थिर निष्कर्ष दिया है। इन आलोचनात्मक टिप्पणियों के साथ हाई कोर्ट ने पिछले आदेशों को रद्द कर दिया और सभी अपीलकर्ताओं को दोषमुक्त करार दिया।

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