बैंकों से कर्ज लेकर नहीं चुकाने में वाले आम से खास लोग शामिल हैं। हालांकि, बैंकों से करोड़ों का कर्ज लेकर नहीं चुकाने वाले में बड़े उद्योगपति और अमीर लोग ज्यादा हैं। क्या आपको पता है कि पिछले पांच साल में बैंकों ने कितने लाख करोड़ के कर्ज की वसूली होने की उम्मीद छोड़ दी है। अगर नहीं तो जानकर आप चौंक जाएंगे। बैंकों ने पिछले पांच वित्त वर्षों के दौरान 10,09,511 करोड़ रुपये के कर्ज मिलता नहीं देखकर उसे बट्टे खाते में डाल दिया है। यानी, इस तरह के कर्ज की वसूली की उममीद बहुत ही कम हो जाती है। अगर इस रकम को देश में बन रहे एक्सप्रेस-वे की लागत से तौले तो भारत इनते रकम में 11,000 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेस-वे बना देता। आपको बता दें कि 1 किमी एक्सप्रेस-वे बनाने की लागत करीब 9 करोड़ रुपये आती है। आप खुद फैसला करें कि किस तरह बैंकों का कर्ज लेकर नहीं चुकाने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ रहा है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने दी जारकारी
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को संसद में बताया कि बैंकों ने पिछले पांच वित्त वर्षों के दौरान 10,09,511 करोड़ रुपये के फंसे कर्ज (एनपीए) बट्टे खाते में डाले हैं। त्तमंत्री ने राज्यसभा को एक लिखित उत्तर में कहा कि गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) या फंसे कर्ज को बट्टे खाते में डालते हुए उसे संबंधित बैंक के बही खाते से हटा दिया गया है। इसमें वे फंसे हुए कर्ज भी शामिल हैं जिसके एवज में चार साल पूरे होने पर पूर्ण प्रावधान किया गया है। सीतारमण ने कहा, ‘‘बैंक आरबीआई के दिशानिर्देशों तथा अपने-अपने निदेशक मंडल की मंजूरी वाली नीति के अनुसार पूंजी का अनुकूलतम स्तर पर लाने लिए अपने अपने बही-खाते को दुरूस्त करने, कर लाभ प्राप्त करने और पूंजी के अनुकूलतम स्तर प्राप्त करने को लेकर नियमित तौर पर एनपीए को बट्टे खाते में डालते हैं। आरबीआई से मिली जानकारी के अनुसार अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) ने पिछले पांच वित्त वर्षों के दौरान 10,09,511 करोड़ रुपये की राशि को बट्टे खाते में डाला है।
बट्टे खाते में डालने से कर्जदार को लाभ नहीं
उन्होंने स्पष्ट किया कि बट्टे खाते में कर्ज को डालने से कर्जदार को लाभ नहीं होता। वे पुनर्भुगतान के लिए उत्तरदायी बने रहेंगे और बकाये की वसूली की प्रक्रिया जारी रहती है। बैंक उपलब्ध विभिन्न उपायों के माध्यम से बट्टे खाते में डाले गए राशि को वसूलने के लिये कार्रवाई जारी रखते हैं। इन उपायों में अदालतों या ऋण वसूली न्यायाधिकरणों में मुकदमा दायर करना, दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता, 2016 के तहत मामले दर्ज करना और गैर- निष्पादित संपत्तियों की बिक्री आदि शामिल हैं। उन्होंने कहा कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने पिछले पांच वित्त वर्षों के दौरान कुल 6,59,596 करोड़ रुपये की वसूली की है। इसमें बट्टे खाते में डाले गये कर्ज में से 1,32,036 करोड़ रुपये की वसूली शामिल है।