भारत के सरकारी बैंक बीते लंबे वक्त से गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) या डूबे कर्ज के दाग को लेकर काफी बदनाम रहे हैं। आरबीआई गवर्नर रहे रघुराम राजन से लेकर उर्जित पटेल और शक्तिकांत दास के समय तक एनपीए के ये दाग बदस्तूर बैंकों की छवि खराब करते रहे। लेकिन अब देखकर लगता है कि हालात सुधर रहे हैं। एनपीए के प्रबंधन में रिजर्व बैंक की सख्ती के चलते बैंको के एनपीए में गिरावट आई है।
सभी बैंकों के स्तर में सुधार
एक जाता रिपोर्ट के अनुसार एनपीए के प्रबंधन में बीते वित्त वर्ष 2022-23 में बैंक ऑफ महाराष्ट्र (बीओएम) का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा है। बीते वित्त वर्ष में बीओएम का शुद्ध एनपीए घटकर 0.25 प्रतिशत के निचले स्तर पर आ गया है। बैंकों के वार्षिक आंकड़ों पर गौर करें, तो पता चलता है कि तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक के सालाना कारोबार वाले न केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों बल्कि सभी बैंकों में यह डूबे कर्ज का सबसे निचला अनुपात है।
निजी क्षेत्र में HDFC अव्वल
एनपीए के प्रबंधन के मामले में पुणे के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के बाद एचडीएफसी बैंक का स्थान है। बीते वित्त वर्ष की समाप्ति तक एचडीएफसी बैंक का शुद्ध एनपीए 0.27 प्रतिशत रहा। इसके बाद 0.37 प्रतिशत के साथ कोटक महिंद्रा बैंक का स्थान रहा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बीओएम के बाद देश के सबसे बड़े ऋणदाता भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) का स्थान रहा। मार्च, 2023 के अंत तक एसबीआई का शुद्ध एनपीए घटकर 0.67 प्रतिशत रह गया। बैंक ऑफ बड़ौदा का शुद्ध एनपीए 0.89 प्रतिशत रहा।
लोग ग्रोथ के मामले में BOM अव्वल
ऋण वृद्धि के मामले में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों में 29.49 प्रतिशत की वृद्धि के साथ बीओएम पहले स्थान पर रहा। इसके बाद 21.28 प्रतिशत के साथ इंडियन ओवरसीज बैंक का स्थान रहा। इंडसइंड बैंक 21 प्रतिशत ऋण वृद्धि के साथ तीसरे स्थान पर है। वहीं एसबीआई की ऋण वृद्धि बीते वित्त वर्ष में 15.38 प्रतिशत रही।