आज गुरु गोविंद सिंह की जयंती है। क्या ऐसे में चंडीगढ़ में बैंकों में अवकाश है। यानी यहां बैंक बंद हैं। लेकिन देश के बाकी हिस्सों में बैंक खुले हैं। वहां काम-काज सामान्य तौर पर होते रहेंगे। कुछ विशेष मौके पर बैंक में छुट्टियां स्थानीय पर्व-त्योहारों पर भी निर्भर करती हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, बैंक प्रत्येक राज्य के लिए विशिष्ट क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अवकाशों पर बंद रहते हैं। कैलेंडर के मुताबिक, जनवरी में 13 बैंक हॉलिडे हैं। इनमें गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय उत्सव, क्षेत्रीय त्योहार और वीकेंड क्लोजिंग शामिल हैं।
स्थानीय बैंक शाखाओं से पुष्टि कर लें
बता दें, राज्य आधारित विशिष्ट छुट्टियों के अलावा, पूरे भारत में बैंक सभी रविवार और हर महीने के दूसरे और चौथे शनिवार को बंद रहते हैं। बैंकों के ब्रांच पहले और तीसरे शनिवार को खुले होते हैं। इस दिन काम-काज सामान्य तौर पर ही होता है। ग्राहकों को सलाह है कि कभी भी यात्रा की योजना बनाने से पहले अपनी स्थानीय बैंक शाखाओं से पुष्टि कर लें, क्योंकि राज्य के मुताबिक छुट्टियां अलग-अलग होती हैं। RBI के अवकाश कार्यक्रम के मुताबिक, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय छुट्टियों के साथ-साथ दूसरे और चौथे शनिवार और रविवार के कारण जनवरी में बैंक 13 दिन बंद रहेंगे। बैंक की छुट्टियों को RBI द्वारा जारी वार्षिक कैलेंडर में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के प्रावधानों के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2025
सिख धर्म के 10वें गुरु, उनका अनुकरणीय जीवन साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती सिख समुदाय के बीच एक महत्वपूर्ण दिन है। गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर, 1666 को पटना, बिहार में हुआ था। गुरु गोबिंद सिंह जयंती की गणना चंद्र कैलेंडर के मुताबिक की जाती है। इस साल उनकी 356वीं जयंती 6 जनवरी को मनाई जा रही है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पौष माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 1723 संवत को हुआ था।
उनकी जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में भी जाना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह एक आध्यात्मिक गुरु, योद्धा, दार्शनिक और कवि थे। सिख धर्म में उनके विशाल योगदान के कारण, उनके कई अनुयायी उन्हें शाश्वत गुरु मानते हैं। गुरु गोबिंद सिंह न केवल एक महान योद्धा, दार्शनिक, कवि थे, बल्कि एक आध्यात्मिक गुरु भी थे। वह केवल नौ वर्ष के थे जब वे अपने पिता गुरु तेग बहादुर की मृत्यु के बाद सिखों के नेता बने।