Highlights
- एडीबी ने आर्थिक वृद्धि के अनुमानों को 7.2 फीसदी से घटाकर अब 7% कर दिया
- IMF ने विकास दर में 80 बेसिस पॉइंट की कटौती करते हुए इसे घटाकर 7.4 पर ला दिया
- फिच भी बीते सप्ताह भारतीय ग्रोथ का अनुमान घटाकर 7 फीसदी कर चुकी है
Indian Economy: अमेरिका सहित यूरोप की इकोनॉमी मंदी और महंगाई के संकट से जूझ रही हैं। भारत का हाल भी कुछ खास जुदा नहीं हैं। इस बीच दुनिया भर की बड़ी आर्थिक संस्थाओं और रेटिंग एजेंसी ने भारत के लिए ग्रोथ के अनुमान घटाने शुरू कर दिए हैं। इस साल की शुरुआत में जो अनुमान जारी हुए थे, लगभग सभी संस्थाओं ने उसमें कमी कर दी है।
ताजा उदाहरण एशियाई विकास बैंक (एडीबी) का है। एडीबी ने 2022-23 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि के अनुमानों को पहले के 7.2 फीसदी से घटाकर अब सात फीसदी कर दिया है। यह आरबीआई के 7.2 फीसदी ग्रोथ के स्तर के बराबर है। इससे पहले आईएमएफ ने विकास दर में 80 बेसिस पॉइंट की कटौती करते हुए इसे घटाकर 7.4 पर ला दिया था। वहीं रेटिंग एजेंसी फिच भी बीते सप्ताह भारतीय ग्रोथ का अनुमान घटाकर 7 फीसदी कर चुकी है।
ADB ने बताया ये कारण
एशियाई विकास बैंक ने ग्रोथ में कमी के दो कारण बताए हैं, इसमें पहला है अनुमान से अधिक ऊंची महंगाई और दूसरा रिजर्व बैंक की मौद्रिक सख्ती। एडीबी ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट ‘एडीओ’ से अतिरिक्त जानकारी देते हुए कहा कि 2022-23 की पहली तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था सालाना आधार 13.5 फीसदी की दर से बढ़ी है जो सेवाओं में मजबूत वृद्धि दर्शाता है। उसने आगे कहा, ‘‘हालांकि GDP (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि को 2022 (मार्च 2023 में खत्म होने वाले वर्ष) के लिए ‘एडीओ 2022’ के अनुमान से घटाकर 7 फीसदी और वर्ष 2023 (मार्च 2024 में खत्म होने वाले वर्ष) के लिए 7.2 फीसदी किया गया है क्योंकि कीमतों के दबाव की वजह से घरेलू खपत प्रभावित होगी वहीं वैश्विक मांग में कमी तथा तेल की ऊंची कीमतें शुद्ध निर्यात को प्रभावित करेंगे।’’
चीन में भी मंदी की आशंका
एडीबी ने भारत के अनुमान को ही नहीं घटाया है, बल्कि आर्थिक महाशक्ति और दुनिया की फैक्ट्री कहे जाने वाले चीन के लिए विकास अनुमानों को घटा दिया है। ‘एडीओ’ में चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी और आर्थिक रूकावट को लेकर भी अनुमान जताया गया है। इसमें कहा गया कि यह 2022 में 3.3 फीसदी की दर से वृद्धि करेगी जो पहले के पांच फीसदी के अनुमान से कम हैं।
जानिए मोदी सरकार के सामने क्या है कश्मकश
हाल ही में मोदी सरकार और रिजर्व बैंक को लेकर कुछ खबरें सामने आई हैं। यहां मोदी सरकार ने भी रिजर्व बैंक के सामने वही समस्याएं रखी हैं जो कि एडीबी ने गिनाई हैं। रिजर्व बैंक इस साल मई से लगातार ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी कर रहा है। इसके पीछे रिजर्व बैंक की मंशा महंगाई पर काबू पाने की है। हालांकि जुलाई में इसका असर दिखाई दिया और महंगाई 6.7 प्रतिशत पर आई लेकिन अगस्त में महंगाई फिर से सिर उठाते हुए 7 फीसदी पर पहुंच गई है। मोदी सरकार को डर है कि रिजर्व बैंक की इस आर्थिक सख्ती का असर भारत की ग्रोथ प्रभावित हो सकती है।
बढ़ती ब्याज दरों से थम रहा है ग्रोथ का पहिया?
कई अर्थशास़्त्री रिजर्व बैंक द्वारा बार बार ब्याज दरें बढ़ाने को इकोनॉमी के लिए खतरनाक मान रहे हैं। रिजर्व बैंक 30 सितंबर को मौद्रिक नीति की घोषणा करेगा। जिसमें पूरी संभावना है कि रिजर्व बैंक एक बार ब्याज दरें बढ़ाने जा रहा है। इस संबंध में अर्थशास्त्री प्रो.रुस्तम सोलंकी कहते हैं कि कर्ज महंगा होने के कारण कारोबारी नया कर लेने से पीछे हटेंगे। जिससे मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ धीमी पड़ेगी और देश में मांग के अनुरुप सप्लाई न होने से कीमतों में इजाफा देखने को मिल सकता है।