नकदी संकट से जूझ रहा भारत का पड़ौसी श्रीलंका पिछले साल ही दिवालिया घोषित कर दिया गया था। तब से श्रीलंका सरकार देश में नया निवेश आकर्षित करने के लिए हाथ पैर मार रही है। इस बीच भारत से श्रीलंका के लिए अच्छी खबर आई है। दिवालिया घोषित होने के बाद श्रीलंका में पहला निवेश भारत से आया है। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि निवेश करने वाला कोई और नहीं, बल्कि हिंडनबर्ग खुलासे के बाद हिचकोले खा रहा भारत का दिग्गज अडानी समूह है। अडानी ग्रुप को 442 मिलियन डॉलर की पवन ऊर्जा परियोजना को मंजूरी मिल गई है।इस डील के अनुसार अडानी समूह की कंपनी अडानी ग्रीन एनर्जी, श्रीलंका के उत्तर में दो पवन फार्म स्थापित करेगी।
श्रीलंका के बोर्ड आफ इन्वेस्टमेंट ने एक बयान में कहा कि अडानी समूह का कुल निवेश 442 मिलियन डॉलर है। ये दोनों विंड एनर्जी प्लांट "2025 तक" राष्ट्रीय ग्रिड को बिजली की आपूर्ति करेंगे। यह परियोजना श्रीलंका द्वारा 2021 में कोलंबो में अदानी को 700 मिलियन डॉलर की सामरिक बंदरगाह टर्मिनल परियोजना मिलने के बाद दूसरा बड़ा प्रोजेक्ट है।
चीन की बजाए भारत को तरजीह
श्रीलंका में चीन का प्रभाव काफी पुराना है। लेकिन इस डील को व्यापक रूप से इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच भारत की एक बड़ी रणनीतिक बढ़त माना जा रहा है। अडानी समूह कोलंबो हार्बर में एक चीनी-संचालित टर्मिनल के ठीक बगल में 1.4 किलोमीटर, 20 मीटर गहरी जेट्टी का निर्माण कर रही है। यह दुबई और सिंगापुर के बीच एकमात्र गहरे समुद्र का कंटेनर बंदरगाह है।
2024 तक पूरे होंगे प्रोजेक्ट
श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री कंचना विजेसेकरा ने कहा कि पवन ऊर्जा परियोजना को अंतिम रूप देने के लिए उन्होंने बुधवार को कोलंबो में अडाणी के अधिकारियों से मुलाकात की। उन्होंने कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि बिजली संयंत्र दिसंबर 2024 तक चालू हो जाएंगे।"
मुश्किल में अडानी समूह
श्रीलंका में निवेश की घोषणा उस वक्त आई है, जब अडानी समूह बीते एक महीने से अमेरिकी निवेश फर्म हिंडनबर्ग के आरोपों के बाद हिचकोले खा रही है। हिंडनबर्ग ने अडानी की कंपनियों पर लेखांकन धोखाधड़ी और मूल्य हेरफेर का आरोप लगाया है। इसके बाद से समूह के बाजार पूंजीकरण में 120 बिलियन डॉलर से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है।
चीन की बजाए भारत को तरजीह
इस विंडा फार्म की बात करें तो भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में द्वीपों पर तीन पवन फार्म बनाने के लिए 12 मिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट को चीन की कंपनियों को सौंपा गया था। लेकिन भारतीय सीमा के नजदीक इस निर्माण पर भारत की आपत्तियों के बाद इसे रद्द कर दिया गया था।