मुंबई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 11 साल के निचले स्तर पर आने से सरकारी पेट्रोलियम कंपनियों की अंडररिकवरी काफी कम हुई है। ऐसी स्थिति में तेल कंपनियों को चालू वित्त वर्ष के दौरान बेहतर मुनाफे की उम्मीद है। तेल कंपनियां को विभिन्न पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री उनकी लागत से कम दाम पर करने से होने वाला नुकसान (अंडर रिकवरी) 2015-16 में 58 फीसदी घटकर 30,000 करोड़ रुपए रह जाने का अनुमान है। इससे पिछले वित्त वर्ष में यह राशि 72,300 करोड़ रुपए रही थी। एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।
तेल कंपनियों की अंडर रिकवरी 58 फीसदी घटी
रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट और प्रत्यक्ष कैश ट्रांसफर स्कीम का दायरा बढ़ने से अंडर रिकवरी में कमी आई है। रेटिंग एजेंसी इक्रा की रिपोर्ट के अनुसार भारत की कच्चे तेल का खरीद मूल्य यदि 51 डालर प्रति बैरल रहता है और रुपए का एक्सचेंज रेट 65 रुपए प्रति डॉलर रहती है, तो तेल मार्केटिंग कंपनियों का लागत से कम मूल्य पर बिक्री का नुकसान 58 फीसदी घट जाएगा। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में ही पेट्रोलियम कंपनियों की अंडर रिकवरी 69 फीसदी घटकर 15,940 करोड़ रुपए रह गई जो एक साल पहले इसी अवधि में 51,110 करोड़ रुपए थी। पहली छमाही में भारत का कच्चे तेल की खरीद का मूल्य 47 डॉलर प्रति बैरल रहा। वहीं इस दौरान एलपीजी और केरोसिन के लिए डायरेक्ट कैश ट्रांसफर बढ़ा।
डीजल की अंडररिकवरी हुई समाप्त
इस दौरान डीजल की अंडररिकवरी भी समाप्त हो गई। यही वजह है कि पहली छमाही में तेल कंपनियों की अंडररिकवरी 69 फीसदी घटकर 15,940 करोड़ रुपए रह गई। एलपीजी सब्सिडी में खामियों को दूर करने की सरकारी कोशिश से भी कंपनियों को फायदा हुआ। सरकार ने अब 10 लाख रुपए सालाना से अधिक कमाई करने वाले करदाताओं के लिये एलपीजी सब्सिडी भी बंद कर दी है, इससे अंडररिकवरी और कम होगी। पहले ही 20 लाख से अधिक एलपीजी उपभोक्ता स्वेच्छा से एलपीजी सब्सिडी छोड़ चुके हैं। इसके अलावा दस लाख रुपए अथवा इससे अधिक सालाना कमाई करने वाले 20 लाख से अधिक उपभोक्ता हैं।