नई दिल्ली। कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देश में लागू देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था पर जो बुरा असर पड़ा है उस असर को कुछ हद तक कम करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले हफ्ते रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कमी की है। रिजर्व बैंक के इस कदम से बैंकों के कर्ज सस्ते होंगे और साथ में बैंकों में फिक्स डिपॉजिट के तौर पर रखे जाने वाले पैसों पर भी पहले के मुकाबले कम ब्याज मिलने की आशंका होगी। रिजर्व बैंक के इस कदम से अर्थव्यवस्था में पहले के मुकाबले ज्यादा पैसा आने की उम्मीद है।
लेकिन क्या लॉकडाउन की मार झेल रही अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने में यह कदम ज्यादा मददगार होगा? या फिर यह ऊंट के मुंह में जीरा साबित होने जा रहा है। देश में लॉकडाउन का चौथा चरण (31 मई) चल रहा है। सरकार ने उद्योगों के लिए नियमों में ढील जरूर दी है, लेकिन लॉकडाउन से पहले उद्योग जिस स्तर पर काम कर रहे हैं उस स्तर के आधे तक भी अभी नहीं पहुंच पाए हैं।
लेकिन तमाम मुश्किलों के बावजूद एक सेक्टर ऐसा है जहां पर पहले के मुकाबले ज्यादा रफ्तार से काम हो रहा है और वह है देश का कृषि सेक्टर। सरकार भी इस सेक्टर से बहुत ज्यादा उम्मीद लगाए बैठी है और शायद यही वजह है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले हफ्ते रेपो और रिवर्स रेपो रेट में कटौती की घोषणा के बाद कहा था कि इस समय सिर्फ कृषि सेक्टर से उम्मीद की किरण नजर आ रही है।
आखिर ऐसा क्यों है कि देश के अर्थशास्त्री और सरकार अब अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए कृषि सेक्टर की तरफ देख रहे हैं? कृषि सेक्टर में ऐसा क्या हुआ है जो वहां से उम्मीद की किरण नजर आ रही है? इन सवालों का जवाब कृषि सेक्टर से जुड़े आंकड़े दे रहे हैं, चाहे वह कृषि उत्पादन हो, किसानों से फसल खरीद हो या फिर खरीफ फसलों की खेती क्यों न हो। तमाम मोर्चों पर आंकड़े सरकार के लिए उम्मीद की किरण नजर आ रहे हैं।
सबसे पहले इस साल हुए फसल उत्पादन पर नजर डालें तो अनाज, दलहन, तिलहन और कपास की उपज अच्छी हुई है। गेहूं, चावल और तिलहन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है जबकि दलहन और कपास की उपज पिछले साल से ज्यादा है। कृषि मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक 2019-20 के दौरान देश में रिकॉर्ज 11.79 लाख टन चावल, रिकॉर्ड 10.71 लाख टन गेहूं और रिकॉर्ड 3.35 कोरड़ टन तिलहन पैदा हुआ है। इस साल दलहन उत्पादन 2.30 कोरड़ टन और कपास उत्पादन 360 लाख गांठ (170 किलो) अनुमानित है।
किसानों ने अधिकतर फसलों का रिकॉर्ड उत्पादन करके अपना काम कर दिया था और अब सरकार की बारी थी। सरकार ने भी किसानों से भारी मात्रा में फसल की खरीद की है। चावल की रिकॉर्ड खरीद हुई है, देश में पैदा हुए कुल 11.79 करोड़ टन चावल में से अबतक लगभग 39 प्रतिशत यानि 4.59 करोड़ टन सरकार ने खरीदा है। इसी तरह देश में पैदा हुए कुल 10.79 करोड़ टन गेहूं में से लगभग 30 प्रतिशत यानि 3.14 करोड़ टन खरीदा जा चुका है और कई प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में अभी भी भारी मात्रा में किसानों से गेहूं खरीदा जा रहा है, ऐसी संभावना है कि इस साल गेहूं खरीद का भी नया रिकॉर्ड बनेगा।
अन्य फसलों की बात करें तो सरसों, चना, अरहर, उड़द, मूंग, मसूर और मूंगफली की खरीद भी जारी है। 22 मई तक 2.16 लाख से ज्यादा किसानों से 5.42 लाख टन सरसों, 5.30 लाख किसानों से लगभग 5 लाख टन अरहर, 40.39 लाख किसानों से लगभग 6.75 लाख टन चना खरीदा जा चुका है। किसानों से फसलों की यह तमाम खरीद समर्थन मूल्य पर हुई है और सरकार कहती है कि मौजूदा समय में फसल का समर्थन मूल्य लागत का डेड़ गुना से ज्यादा है। इस साल धान का समर्थन मूल्य 1815 व 1835 रुपए प्रति क्विंटल है, गेहूं का समर्थन मूल्य 1925 रुपए प्रति क्विंटल, सरसों का 4425 रुपए, चने का 4875 रुपए, अरहर यानि तुअर का 5800 रुपए, मूंग का 7050 रुपए, मसूर का 4800 रुपए, उड़द का 5700 रुपए और मूंगफली का 5090 रुपए प्रति क्विंटल है। कपास का समर्थन मूल्य 5255 तथा 5550 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है।
किसानों की फसलों की भारी मात्रा में सरकारी खरीद से किसानों के पास पैसा गया है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में आने वाले दिनों में डिमांड और सप्लाई बढ़ने की उम्मीद है जो अर्थव्यवस्ता के लिए मददगार साबित हो सकता है। कृषि सेक्टर से आगे आने वाले दिनों में और उम्मीद बढ़ने लगी है। देशभर में खरीफ फसलों की खेती शुरू हो चुकी है और इस साल शुरुआती सीजन में खरीफ की बुआई पिछले साल के मुकाबले काफी आगे चल रही है। 22 मई तक खरीफ धान का रकबा पिछले साल के मुकाबले 37 प्रतिशत आगे है जबकि खरीफ दलहन का रकबा 33 प्रतिशत और खरीफ तिलहन का रकबा 26 प्रतिशत आगे है।
आगे चलकर खरीफ की बुआई में तेजी से बढ़ोतरी की उम्मीद है और इस साल मौसम विभाग ने मानसून सीजन के दौरान सामान्य बरसात का अनुमान जारी किया है जो खरीफ फसलों के लिए मददगार साबित होगा। खरीफ उत्पादन बढ़ने की स्थिति में कृषि से अर्थव्यवस्था को सुधारने में और मदद मिलेगी। हमारा देश अनाज, दिलहन, कपास और चीनी के मामले में लगभग आत्मनिर्भर है लेकिन खाने के तेल के लिए हमें विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है। देश में खाद्यान्न और कपास का उत्पादन बढ़ा तो देश की जरूरत पूरा होने के बाद निर्यात को बढ़ाने में मदद मिल सकती है और तिलहन की उपज बढ़ने पर खाने के तेल के लिए आयात पर निर्भरता कम होगी।