नई दिल्ली। बीते हफ्ते जर्मन चांसलर एंजेजा मर्कल की मौजूदगी में जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर उम्मीद जताई कि गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स बिल (GST) को अगले साल से लागू कर दिया जाएगा। वहीं दूसरी तरफ वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एक लेक्चर के दौरान जीएसटी को जल्द लागू करने की बात दोहराई। जीएसटी को अब तक का सबसे बड़ा टैक्स सुधार कहा जा रहा है, लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि जीएसटी में टैक्स का रेट क्या होगा? अनुमान है कि जीएसटी की रेट तर्कसंगत होने पर जहां एक ओर महंगाई कम होगी वहीं दूसरी ओर डिमांड बढ़ने से अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा और जीडीपी ग्रोथ रेट में भी तेजी आएगी।
ऐसे में 2 बड़े सवाल खड़े होते हैं?
- तमाम टैक्सों को खत्म करके एक टैक्स लाने का उद्देश्य क्या मौजूदा बिल में पूरा हो रहा है? मौजूदा बिल में जीएसटी का स्वरूप पांच स्तरीय है।
- दूसरा, जीएसटी लागू होने के बाद भी महंगाई या ग्रोथ पर कोई सकारात्मक असर पड़ेगा इसकी क्या गारंटी, क्योंकि अंतराष्ट्रीय अनुभव तो इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
जटिल है मौजूदा जीएसटी का स्वरूप
जीएसटी के पीछे मूल सोच ही यह कि तमाम टैक्सों पर खत्म करके एक यूनीफॉर्म टैक्स प्रणाली लाई जाए। लेकिन अब जो जीएसटी आने वाला है, उसमें पांच स्तरीय टैक्स होंगे। सीजीएसटी के तहत केंद्र के टैक्स (एक्साइज, सर्विस), एसजीएसटी के तहत राज्यों के टैक्स—अंतरराज्यीय बिक्री पर आइजीएसटी (सेंट्रल सेल्स टैक्स की जगह), अंतरराज्यीय आपूर्ति पर एक फीसदी अतिरिक्त टैक्स और पेट्रोल-डीजल, एविएशन फ्यूल पर टैक्स अलग से होंगे। इस पांच स्तरीय जीएसटी के बाद ग्रोथ का तर्क कहां तक उचित है इस पर विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं।
रिफॉर्म और ग्रोथ का नहीं सीधा संबंध
IMF की सूचनाओं के आधार पर एम्बिट कैपिटल की ओर से हाल में जारी रिपोर्ट के मुताबिक इनडायरेक्ट टैक्स सुधार और इकोनॉमिक ग्रोथ का कोई सीधा संबंध नहीं है। 1986 से लेकर साल 2000 के बीच दुनिया के चार देशों में जीएसटी लागू हुआ। लेकिन चार में से सिर्फ एक देश में की ही ग्रोथ बढ़ी। न्यूजीलैंड ने 1986 में जीएसटी अपनाया और 1989 में इसकी दर बढ़ाई। कनाडा ने 1991 में जीएसटी को लागू किया, जबकि ऑस्ट्रेलिया ने इसे 2000 में अपनाया। कनाडा ने 2006 और 2008 में जीएसटी की दरें बढ़ाईं। थाईलैंड में 1991 से जीएसटी लागू हुआ था। इन चारों देशों में केवल न्यूजीलैंड ऐसा देश था,जहां जीएसटी के बाद ग्रोथ में तेजी आई। बाकी तीन देशों की ग्रोथ में गिरावट दर्ज की गई।
महंगाई का गणित
जीएसटी आने के बाद कई प्रकार के टैक्स खत्म हो जाएंगे, जिसका असर महंगाई पर दिख सकता है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, थाईलैंड और न्यूजीलैंड में जीएसटी के बाद महंगाई घटी, लेकिन भारत में जीएसटी को लेकर सबसे बड़ा असमंजस महंगाई को लेकर ही है। जिन देशों ने हाल में जीएसटी लागू किया है, वहां जीएसटी रेट पांच (जापान) से लेकर 19.5 फीसदी (यूरोपीय यूनियन) तक है। मौजूदा आकलनों में भारत के लिए यह दर 18 फीसद आंकी गई है, इससे राजस्व तो नहीं बढ़ेगा लेकिन सरकारों को नुकसान भी नहीं होगा। जीएसटी का ढांचा यही कहता है कि सरकार को रेवेन्यु का नुकसान न हो। भारत में इनडायरेक्ट टैक्स की औसत दर इस समय 24 फीसदी है इसलिए जीएसटी दर इससे ऊपर ही होने की संभावना है। लेकिन 25 फीसदी की जीएसटी दर महंगाई को भड़का देगी, जिससे मांग कम हो सकती है। अगर जीएसटी दर 18 फीसदी तय होती है तो शायद कारें, उपभोक्ता सामान, भवन निर्माण सामग्री सस्ती होगी।
आम जनता पर भारी पड़ सकता है जीएसटी
भारत में टेलीफोन, शिक्षा, होटल आदि दर्जनों सेवाओं की लागत आम लोगों के खर्च का बड़ा हिस्सा है। सेवाओं को लेकर जीएसटी में हर तरह से चोट लगनी तय है। सर्विस टैक्स की दर वर्तमान में 14 फीसदी है, जिसे बढ़ाकर 18 फीसदी तो किया ही जाना है। यानी सेवाएं महंगी होंगी और अगर जीएसटी दर 25 या उससे ऊपर हुई तो सेवाओं पर टैक्स लगभग दोगुना हो जाएगा।