नई दिल्ली। भारत की आर्थिक गतिविधियों की गाड़ी अप्रैल-जून तिमाही में पटरी से उतर गई और आलोचकों ने इसके लिए जीएसटी के साथ-साथ नोटबंदी को भी जिम्मेदार ठहराया। लेकिन विशेषज्ञों की माने तो देश में कमजोर निवेश मांग अर्थव्यवस्था के लिए इन दोनों से बड़ी चुनौती है।
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की एक रिपोर्ट के अनुसार कमजोर निवेश मांग एक बहुत बड़ी संरचनात्मक चुनौती है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 30 प्रतिशत है। अप्रैल-जून तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत रही है, जिसका प्रमुख कारण जीएसटी का क्रियान्वयन होना है। साथ ही विनिर्माण गतिविधियों में भी कमी देखी गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, हमारा मानना है कि बाजार भागीदार जीएसटी और नोटबंदी के चक्रीय प्रभावों पर ज्यादा गौर देकर कहीं ना कहीं भारत की जीडीपी वृद्धि की संरचनात्मक चुनौतियों को नजरअंदाज कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि निवेश मांग में कमी लंबे समय से जारी है। इस मांग में वित्त वर्ष 2016-17 की दूसरी तिमाही से ही कमी दर्ज की जा रही है और यह नोटबंदी एवं जीएसटी के लागू होने से बहुत पहले की बात है।
इसी बीच कैपिटल इकोनॉमिक्स की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2017 की दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) के जीडीपी आंकड़ों के लिए अकेले नोटबंदी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि पहली तिमाही (जनवरी-मार्च) में ही यह घटकर 6.1 प्रतिशत रही थी, जबकि उससे पहले वर्ष 2016 की तीसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में यह 7.5 प्रतिशत थी, यह नोटबंदी से ठीक पहले की तिमाही का आंकड़ा है।