नई दिल्ली। देश में जल हवाई हड्डे जल्द ही हकीकत रूप ले सकते हैं, जहां जमीन एवं पानी दोनों में उड़ान भरने में सक्षम विमान आवाजाही कर सकेंगे। नागर विमानन निदेशालय (DGCA) ने जल हवाई अड्डे स्थापित करने के लिए लाइसेंसिंग नियम जारी किए हैं। सरकार और विमानन कंपनियां लगातार हवाई कनेक्टिविटी बढ़ाने के तौर तरीकों पर विचार कर रही हैं, ऐसे में जल हवाई अड्डे जमीन और पानी में उड़ान भरने में सक्षम विमान (सी-प्लेन) के परिचालन में मदद करेगे। इन्हें एम्फीबियन विमान के नाम से भी जाना जाता है।
डीजीसीए के अनुसार, देश में सी-प्लेन सहित विमान परिचालन के क्षेत्र में तेजी की उम्मीद की जा रही है। इसके लिए तटीय क्षेत्रों, नदी, नहरों और स्थलीय जल निकायों से सीप्लेन के परिचालन की आवश्यकता होगी। इन जल निकायों में सी-प्लेन के परिचालन को नियमित आधार पर नियंत्रित करने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता है। इसका नियंत्रण डीजीसीए के अधीन होगा।
नियामक ने इस संबंध में, जल हवाई अड्डे की लाइसेंस की आवश्यकताओं और प्रक्रियाओं को लेकर नागर विमानन शर्तें (CAR) जारी की है। डीजीसीए के मुताबिक जल हवाई अड्डा इमारत, प्रतिष्ठान और उपकरण समेत पानी में एक निर्धारित क्षेत्र है, जिसका उपयोग विमानों के आगमन-प्रस्थान या आवाजाही के लिए नियमित या फिर अंतराल में किया जा सकता है।
किसी भी कंपनी को जल हवाई अड्डे स्थापित करने के लिए विभिन्न प्राधिकरणों से मंजूरी लेनी होगी। इसमें रक्षा, गृह, पर्यावरण एवं वन और पोत परिवहन मंत्रालय भी शामिल हैं। जल हवाई अड्डे का लाइसेंस दो वर्ष के लिए वैध होगा।
डीजीसीए ने कहा कि शुरुआत में अस्थायी लाइसेंस छह महीने के लिए जारी किया जाएगा, जिसमें जल हवाई अड्डे के परिचालन की निगरानी की जाएगी। निगरानी अवधि पूरी होने और सुधारात्मक कार्रवाई के पूरा होने के बाद नियमित लाइसेंस जारी किया जाएगा। जल हवाई अड्डे के लिए औपचारिक आवेदन परिचालन शुरू करने के लिए तय तारीख से कम से कम 90 दिन पहले जमा करना होगा।