वाशिंगटन। अमेरिका के विदेश विभाग ने अमेरिकी वीजा नियमों में बड़ा बदलाव किया है। अमेरिका में विदेशी नागरिकों की बारीकी से जांच करने के लिए अपनाई गई नई नीति के तहत यहां प्रवेश के लिए लगभग सभी वीजा आवेदकों को सोशल मीडिया के इस्तेमाल के बारे में जानकारी देनी होगी। नए नियमों के तहत वीजा अप्लाई करने वाले लोगों को अपने सोशल मीडिया का नाम और पांच साल तक के ईमेल एड्रेस और फोन नंबर भी देने होंगे। गौरतलब है कि इससे पहले केवल उन लोगों को यह जानकारी देने के लिए कहा जाता था जो आतंकवादी संगठनों के प्रभाव वाले क्षेत्रों से अमेरिका आना चाहते थे।
अमेरिका के विदेश विभाग ने कहा कि हम अमेरिका में कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए लोगों के आने का स्वागत करते हैं। अपने नागरिकों की सुरक्षा को देखते हुए हम स्क्रीनिंग प्रोसेस को और ज्यादा मजबूत बना रहे हैं। हालांकि, सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करने वाले आवेदकों के पास इसमें एक अन्य विकल्प मौजूद होगा ताकि वह यह बता सकें कि वह इनका इस्तेमाल नहीं करते हैं।
अमेरिकी दूतावास में वीजा फॉर्म डी-160 और डी-260 में आवेदकों से उनके पिछले पांच साल में इस्तेमाल किए जाने वाले सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी मांगी गई है। इस लिस्ट में जो सोशल मीडिया अकाउंट लिए गए हैं, उनमें फेसबुक, फ्लिकर, गूगलप्लस, ट्विटर, लिंक्ड इन, और यूट्यूब शामिल हैं। अमेरिकी विदेश विभाग ने शनिवार को एक नयी नीति अपनाई जिसके तहत अस्थायी आगंतुकों समेत सभी वीजा आवेदकों को अन्य जानकारी के साथ साथ एक ड्रॉप डाउन मेनू में अपने सोशल मीडिया पहचानकर्ताओं को सूचीबद्ध करने की जरूरत होगी। अबतक इस ड्राप डाउन मेनू में केवल बड़े सोशल मीडिया वेबसाइटों की जानकारी थी, लेकिन अब इसमें आवेदकों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सभी साइटों की जानकारी देने की सुविधा उपलब्ध होगी।
पिछले साल भी यह प्रस्ताव सामने आया था लेकिन तब प्रशासन ने कहा था कि इस कदम फैसले से हर साल तकरीबन 1.47 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। कुछ कूटनीतिक और आधिकारिक वीजा आवेदकों को कड़े नए उपायों से छूट दी जाएगी। 'बीबीसी' की खबर के मुताबिक, काम करने या पढ़ाई करने के लिए अमेरिका जाने वाले लोगों को अपनी जानकारी सौंपनी होगी। 30 सितंबर 2018 तक एक साल के भीतर भारत में अमेरिकी दूतावास ने 8.72 लाख वीजा जारी किए थे। 'न्यू यॉर्क टाइम्स' का अनुमान है कि सालाना तौर पर 1.47 करोड़ लोगों से उनके सोशल मीडिया अकाउंट की जानकरी देने के लिए कहा जाएगा।
इन्हें भी देना होगा जानकारी
अमेरिकी विदेश विभाग ने इस नियम का समर्थन करते हुए कहा कि अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा के लिए वह स्क्रीनिंग प्रक्रियाओं में सुधार करने के लिए रास्ता खोजने पर काम कर रहे हैं। वे लोग जो आतंकवादी समूहों द्वारा नियंत्रित दुनिया के कुछ हिस्सों में गए थे, उन आवेदकों को पहले अतिरिक्त जानकारी देने की जरूरत थी, लेकिन अब उन्हें भी इस डेटा को सौंपना होगा।
इन सोशल मीडिया अकाउंट्स की मांगी जानकारी
रेड्डी ऐंड न्यूमैन इमीग्रेशन लॉ फर्म की एमिली न्यूमैन का कहना है कि अमेरिकी दूतावास में वीजा फॉर्म डी-160 और डी-260 में आवेदकों से उनके पिछले पांच साल में इस्तेमाल किए जाने वाले सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी मांगी गई है। इस लिस्ट में जो सोशल मीडिया अकाउंट लिए गए हैं, उनमें फेसबुक, फ्लिकर, गूगलप्लस, ट्विटर, लिंक्ड इन, और यूट्यूब शामिल हैं।
नियम सभी वीजा आवेदकों पर लागू, झूठ बोलना पड़ेगा महंगा
अमेरिकी विदेश विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि अमेरिकी वीजा का आवेदन करने वाले लोग अगर जानकारी देने में कुछ भी झूठ या गलत बताते पकड़े गए तो इसके नतीजे काफी गंभीर होंगे। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने पहली बार मार्च 2018 में नियमों का प्रस्ताव किया था। इस बीच अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन ने कहा है कि अब तक इस बात के सबूत नहीं मिले हैं कि सोशल मीडिया की मॉनिटरिंग काफी ज्यादा प्रभावी या असरकार रही हो।
ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान कही थी 'कड़े पुनरीक्षण' की बात
गौरतलब है कि साल 2016 में राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार में ट्रंप ने इमीग्रेशन का मुद्दा गंभीरता से उछाला था और डोनाल्ड ट्रंप ने 2016 में अपने चुनावी प्रचार के दौरान प्रवासियों की 'कड़े पुनरीक्षण' की बात कही थी और कहा था कि अमेरिका अपने यहां अवैध प्रवासियों को शरण नहीं देगा। इसके बाद ट्रम्प प्रशासन ने पहली बार मार्च 2018 में नियमों का प्रस्ताव किया था और उन्होंने आतंकी गतिविधियों में शामिल लोगों पर भी निगरानी की बात कही थी। सोशल मीडिया पर नजर इसी का नतीजा है। उस समय, अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन नाम के नागरिक अधिकार समूह ने कहा था कि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि इस तरह के सोशल मीडिया की निगरानी प्रभावी या निष्पक्ष है।
अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक हाल के वर्षों में जैसा हमलोगों ने दुनिया भर में देखा है कि आतंकवादी भावनाओं और गतिविधियों के लिए सोशल मीडिया एक बड़ा मंच हो सकता है। यह आतंकवादियों, जन सुरक्षा के खतरे और अन्य खतरनाक गतिविधियों की पहचान करने का एक उपकरण साबित होगा। इससे ऐसे लोगों को न तो आव्रजक लाभ मिलेगा और न ही अमेरिकी धरती पर पैर जमाने की सुविधा होगी।