नयी दिल्ली। उत्तर प्रदेश सरकार राज्य बिजली वितरण कंपनियों की माली हालत में सुधार लाने और बिल वसूली प्रक्रिया को दुरूस्त करने के लिए सरकारी कार्यालयों और विधायकों तथा सांसदों समेत सभी जन प्रतिनिधियों के यहां स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने जा रही है।
सरकारी विभागों पर 13,000 करोड़ रुपए से अधिक बकाये के बीच अगले महीने 15 नवंबर से शुरू इस अभियान के पहले चरण में एक लाख स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने का लक्ष्य रखा गया है। राज्य के बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा ने यह जानकारी दी है। बिजली बिल के रूप में विभिन्न सरकारी विभागों पर बकाया राशि बढ़ने के साथ यह कदम उठाया जा रहा है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार मार्च 2019 को समाप्त वित्त वर्ष में देश भर में सरकारी विभागों पर राज्य बिजली वितरण कंपनियों का बकाया 41,743 करोड़ रुपए पहुंच गया जो इससे पूर्व वित्त वर्ष में 36,900 करोड़ रुपए था। इसमें उत्तर प्रदेश में ही पुलिस, सिंचाई समेत विभिन्न सरकारी विभागों एवं इकाइयों पर बकाया 13,480 करोड़ रुपए है। वहीं तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में यह क्रमश: 7,298 करोड़ रुपए और 5,542 करोड़ रुपए है।
बिजली मंत्री शर्मा ने कहा, 'हम पहले चरण में सभी सरकारी दफ्तरों और जन प्रतिनिधियों के यहां स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने जा रहे हैं। यह अभियान 15 नवंबर से शुरू होगा।' सरकार सभी को सातों दिन 24 घंटे बिजली देने का लक्ष्य लेकर चल रही है और यह तभी संभव है जब बेहतर बुनियादी ढांचे के साथ बिजली कंपनियों की वित्तीय स्थिति मजबूत हो। उन्होंने कहा, 'स्मार्ट मीटर चरणबद्ध तरीके से लगाये जाएंगे और मार्च 2020 तक हम सभी सरकारी दफ्तरों और जन प्रतिनिधियों के यहां स्मार्ट मीटर लगा देंगे।'
पहले चरण में एक लाख स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य है। पहले चरण के लिये सरकार ने 50 लाख स्मार्ट प्रीपेड मीटर के आर्डर दिए हैं। स्मार्ट प्रीपेड मीटर में ग्राहक को मोबाइल फोन की तरह मीटर रिचार्ज कराना होता है और रिचार्ज के हिसाब से ही वह बिजली का उपभोग कर सकेंगे। इससे अन्य बातों के अलावा जहां एक तरफ बिजली चोरी पर अंकुश लगेगा वहीं ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा मिलेगा। एक सवाल के जवाब में शर्मा ने कहा, 'पूरे प्रदेश में अभी लगभग 7 लाख से अधिक स्मार्ट प्रीपेड लगाये जा चुके हैं और 2022 तक पूरे प्रदेश में सभी ग्राहकों को इसके दायरे में लाया जाएगा।' नुकसान से जुड़े एक सवाल के जवाब में शर्मा ने कहा, 'राज्य में बिजली क्षेत्र का घाटा कुल मिला कर लगभग 72,000 करोड़ रुपये से ऊपर पुंहच गया है। हमारा लक्ष्य 2032 तक इसे दस हजार करोड़ रुपये से भी नीचे लाना है।'