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सिंदूर में हानिकारक कैमिकल पाये जाने का दावा, अमेरिकी संस्था ने अपने सर्वे में किया खुलासा

फूड एवं ड्रग्स विभाग ने कॉसमेटिक्स में प्रति ग्राम 20 माइक्रोग्राम लेड इस्तेमाल की इजाजत दी है, लेकिन सिंदूर के सैंपल में 10,000 माइक्रोग्राम लेड था

Manoj Kumar @kumarman145
Published on: August 31, 2017 15:09 IST
सिंदूर में हानिकारक कैमिकल पाये जाने का दावा, अमेरिकी संस्था ने अपने सर्वे में किया खुलासा- India TV Paisa
सिंदूर में हानिकारक कैमिकल पाये जाने का दावा, अमेरिकी संस्था ने अपने सर्वे में किया खुलासा

नई दिल्ली। तिलक लगाने और पूजा में इस्तेमाल होने वाले सिंदूर में हानिकारक कैमिकल होने का दावा किया गया है। अमेरिकी जनरल ऑन पब्लिक हेल्थ में छपे वहां की संस्था रुटगेयर्स स्कूल ऑप पब्लिक हेल्थ के सर्वे में यह खुलासा हुआ है। संस्था ने अमेरिका और भारत में अलग-अलग दुकानों से सिंदूर के जो सैंपल इकट्ठे किए थे उनमें करीब 80 फीसदी सेंपल में लेड के अंश पाये गए हैं। करीब एक तिहाई सेंपल तो ऐसे हैं जिनमें लेड की मात्रा अमेरिका के फूड एवं ड्रग्स विभाग के तय मानकों से अधिक है।

सिंदूर के कुल 118 सैंपल लिए गए थे जिनमें से 95 सेंपल अमेरिका में न्यू जर्सी स्थित साउथ एशियन स्टोर्स से लिए गए हैं और बाकी 23 सैंपल भारत में मुंबई और दिल्ली से लिए गए हैं। कुल मिलाकर 80 फीसदी सैंपल में लेड की मात्रा पायी गई है। अमेरिका से जो सैंपल लिए गए हैं उनमें से 83 फीसदी और भारत से लिए गए सैंपलों में से 78 फीसदी में लेड की मात्रा प्रति एक ग्राम एक माइक्रोग्राम पायी गई है।

अमेरिका के फूड एवं ड्रग्स विभाग ने कॉसमेटिक्स में प्रति एक ग्राम 20 माइक्रोग्राम लेड के इस्तेमाल की इजाजत दी है। लेकिन जो सैंपल लिए गए हैं उनमें से अमेरिका से लिए गए 19 फीसदी और भारत से लिए गए 43 फीसदी सेंपल में मात्रा इससे अधिक थी। अमेरिका से लिए गए 3 और भारत से लिए गए 2 सैंपल में तो लेड की मात्रा प्रति 1 ग्राम 10,000 माइक्रोग्राम से भी ज्यादा थी।

संस्था ने कहा है कि लेड का कोई भी सेफ लेवल नहीं है, यह किसी भी तरह से हमारे शरीर में नहीं होना चाहिए, खासकर 6 साल की उम्र से नीचे के बच्चों के लिए ये ज्यादा हानिकारक है। अगर कोई ऐसा प्रोडक्ट है जिसमें लेड हो तो वह सेहत के लिए खतरा हो सकता है।

अमेरिका में सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने चेताया है कि बच्चों के खून में अगर लेड की बहुत कम मात्रा भी हो तो उससे बच्चों के मानसिक स्तर पर असर पड़ सकता है, किसी विषय पर उनके ध्यान देने की क्षमता और उनकी पढ़ाई प्रभावित हो सकती है।

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