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10 साल में भी फ्लैट नहीं दे पाई यूनिटेक, अब उपभोक्ता को देना होगा 60 लाख रुपए का हर्जाना

शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने रीयल एस्टेट कंपनी यूनिटेक को गुड़गांव के एक व्यक्ति को अपार्टमेंट आवंटित करने में विफल रहने पर 60 लाख रुपए का भुगतान करने को कहा है।

Dharmender Chaudhary
Published on: May 22, 2016 14:41 IST
10 साल में भी फ्लैट नहीं दे पाई यूनिटेक, अब उपभोक्ता को देना होगा 60 लाख रुपए का हर्जाना- India TV Paisa
10 साल में भी फ्लैट नहीं दे पाई यूनिटेक, अब उपभोक्ता को देना होगा 60 लाख रुपए का हर्जाना

नई दिल्ली। शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने रीयल एस्टेट कंपनी यूनिटेक को गुड़गांव के एक व्यक्ति को अपार्टमेंट आवंटित करने में विफल रहने पर 60 लाख रुपए का भुगतान करने को कहा है। इस व्यक्ति ने करीब एक दशक पहले ग्रेटर नोएडा में अपार्टमेंट बुक कराया था। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (एनसीडीआरसी) ने कंपनी को गुड़गांव निवासी संजय अरोड़ा को यह राशि 18 फीसदी सालाना ब्याज के साथ अदा करने को कहा है। ब्याज का भुगतान उस तारीख से किया जाना है जब यूनिटेक के पास पूरी मांग राशि जमा करा दी गई थी। यूनिटेक के खिलाफ कई अन्य शिकायतें भी हैं। इसमें 144 घर खरीदारों का सामूहिक दावा भी शामिल है।

न्यायमूर्ति जे एम मलिक की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कंपनी ने संपत्ति खरीदने की इच्छा के खरीदार की पूरी जिंदगी परेशानी में डाल दी। रीयल एस्टेट कंपनी ने खरीदार को विलंबित भुगतान पर ब्याज देने को कहकर परेशान किया जबकि परियोजना में कोई प्रगति नहीं हुई थी। उपभोक्ता आयोग ने कंपनी को अरोड़ा को 59,98,560 रुपए का भुगतान करने को कहा है। उन्होंने 2006 में ग्रेटर नोएडा के सेक्टर पीआई दो में फ्लैट बुक कराया था। इसके अलावा एक लाख रुपए मुआवजे और मुकदमा खर्च के रूप में भी उपभोक्ता को अदा करने को कहा गया है। पीठ ने कहा कि तथ्य यह है कि अपार्टमेंट खरीदने की इच्छा से शिकायतकर्ता की पूरी जिंदगी प्रभावित हुई है। कंपनी ने विवादित अपार्टमेंट का आवंटन नहीं किया क्योंकि वह इस परियोजना पर आगे नहीं बढ़ पाई।

करीब 8-9 साल बाद कंपनी ने शिकायतकर्ता को एक और अपार्टमेंट देने की पेशकश की, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया क्योंकि इस अपार्टमेंट के साथ कई और शिकायतें भी थीं। अपने आदेश में पीठ ने कहा कि उसके पास यूनिटेक लि. के खिलाफ कई शिकायतें लंबित हैं। इनमें 144 शिकायतकर्ताओं का सामूहिक दावा भी शामिल है। पीठ ने कहा कि कंपनी ने अरोड़ा से देरी से भुगतान पर ब्याज की मांग की जबकि परियोजना में कोई प्रगति नहीं हुई थी। इससे शिकायतकर्ता बीमार पड़ गया और उसे एक के बाद दूसरे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है।

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