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अरुंधति भट्टाचार्य को है अफसोस, डिजिटलीकरण और ऋण मांग बढ़ाने का एजेंडा नहीं कर पाईं पूरा

भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन पद से सेवानिवृत हुईं अरुंधति भट्टाचार्य ने कहा कि वह दो प्रमुख एजेंडे - डिजिटलीकरण और ऋण मांग में वृद्धि को पूरा नहीं कर पाईं।

Abhishek Shrivastava
Updated on: October 07, 2017 16:26 IST
अरुंधति भट्टाचार्य को है अफसोस, डिजिटलीकरण और ऋण मांग बढ़ाने का एजेंडा नहीं कर पाईं पूरा- India TV Paisa
अरुंधति भट्टाचार्य को है अफसोस, डिजिटलीकरण और ऋण मांग बढ़ाने का एजेंडा नहीं कर पाईं पूरा

मुंबई। सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन पद से सेवानिवृत हुईं अरुंधति भट्टाचार्य ने कहा कि वह दो प्रमुख एजेंडे – डिजिटलीकरण और ऋण मांग में वृद्धि को पूरा नहीं कर पाईं। इसका उन्‍हें अफसोस है। स्टेट बैंक के 214 वर्ष के इतिहास में वह पहली महिला चेयरमैन थीं। चार साल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद 6 अक्‍टूबर को वह सेवानिवृत्‍त हो गईं।

बैंक की चेयरमैन के तौर पर मीडिया से अंतिम बार मुखातिब होते हुए भट्टाचार्य ने कहा, एक जिंदगी में ऐसा कोई पद नहीं है, जहां पहुंचकर कोई यह कह सके कि अब एजेंडा खत्म हो गया है। दरअसल, होता यह है कि आप एक एजेंडे से शुरू करते हैं और जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं, नए  एजेंडे उसमें जुड़ते चले जाते हैं। हम डिजिटल मोर्चे पर कुछ देना चाहते थे जो कि वास्तव में अलग था और जुलाई में कुछ समय के लिए ऐसा हुआ भी। अब, इसमें थोड़ी देर हो गई है क्योंकि परियोजना का दायरा बढ़ गया है। जाहिर है कि यह अधूरा एजेंडा है, लेकिन यह मायने नहीं रखता क्योंकि हमने इस दिशा में काफी प्रगति की है।

भट्टाचार्य ने आगे कहा कि महत्वपूर्ण और बड़े कदम उठाए जाने के बावजूद बैंक की ऋण मांग वृद्धि ज्यादा बेहतर नहीं हो सकी। उन्होंने कहा, हालांकि, हमने जोखिम की निगरानी, प्रक्रियाओं में सुधार और अनुवर्ती प्रक्रियाओं को सुधारने के लिए हर सभंव प्रयास किया। लेकिन हम ऋण वृद्धि को उस स्तर पर नहीं ला सके जहां हम चाहते थे। इसलिए यह भी एक अधूरा एजेंडा है। उन्होंने आगे कहा कि बैंक ने अच्छा, बुरा और उदासीन सभी दौर देखे। यह रोचक के साथ-साथ बहुत ही मुश्किल यात्रा रही, लेकिन मुझे लगता है कि हम इस यात्रा में बेहतर ढंग से आगे बढ़े हैं।

एसबीआई की पहली महिला चेयरपर्सन रही अरुंधति भट्टाचार्य स्टेट बैंक के साथ प्रोबेशनरी ऑफिसर के रूप में जुड़ने के बाद 40 साल, एक महीने और दो दिन बाद सेवानिवृत्‍त हो गईं। उन्‍होंने कहा कि वह पत्रकार बनना चाहती थीं। उनके शिक्षक कहते थे कि वह संपादक-मटेरियल थी। वह बैंकिंग क्षेत्र में अपने प्रवेश को दुर्घटनावश बताती है। लेकिन यह उनके लिए बुरा नहीं रहा है और एसबीआई के शीर्ष पद तक पहुंची। बैंक के हर विभाग में अपनी छाप छोड़ने के बाद अब वह बैंकिंग और वित्‍त में पीएचडी करने की योजना बना रही हैं।

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