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देश में सभी के लिए एक न्‍यूनतम आय पर विचार, आर्थिक समीक्षा में UBI को बताया गरीबी खत्‍म करने का हथियार

आर्थिक समीक्षा में गरीबी को कम करने के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) को विभिन्‍न सामाजिक कल्‍याणकारी योजनाओं के विकल्‍प के रूप में रेखांकित किया गया है।

Abhishek Shrivastava
Published : January 31, 2017 18:27 IST
देश में सभी के लिए एक न्‍यूनतम आय पर विचार, आर्थिक समीक्षा में UBI को बताया गरीबी खत्‍म करने का हथियार
देश में सभी के लिए एक न्‍यूनतम आय पर विचार, आर्थिक समीक्षा में UBI को बताया गरीबी खत्‍म करने का हथियार

नई दिल्‍ली। आर्थिक समीक्षा 2016-17 में गरीबी को कम करने के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) को विभिन्‍न सामाजिक कल्‍याणकारी योजनाओं के विकल्‍प के रूप में रेखांकित किया गया है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है यूबीआई एक सशक्‍त विचार है, जिस पर गंभीर चर्चा करने का वक्‍त अब आ गया है।

केंद्रीय वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को आर्थिक समीक्षा संसद में पेश की, जिसमें कहा गया है कि,

यूबीआई एक सशक्त विचार है। अगर इसे लागू करने नहीं तो इस पर चर्चा करने का समय जरूर आ गया है।

  • समीक्षा में हर आंख के हर आंसु को पोछने के महात्मा गांधी के दृष्टिकोण का उल्लेख किया गया है।
  • समीक्षा में कहा गया है, महात्मा गांधी को यूबीआई को लेकर यह चिंता हो सकती थी कि यह सरकार के अन्य कार्यक्रमों की तरह एक और कार्यक्रम है लेकिन अंत में इसका समर्थन कर सकते हैं।
  • समीक्षा में कहा गया है कि ऐसी योजना की सफलता के लिए दो पूर्व शर्तें पहले से काम कर रही हैं।
  • इसमें एक जनाधारम (जनधन, आधार और मोबाइल प्रणाली) और दूसरा ऐसे कार्यक्रम की लागत में साझेदारी पर केंद्र-राज्य बातचीत है।
  • इसमें अनुमान लगाया गया है कि यूबीआई के जरिये गरीबी को कम कर 0.5 प्रतिशत तक लाने के कार्यक्रम में जीडीपी के 4-5 प्रतिशत के बराबर लागत आएगी।
  • लेकिन इसके लिए शर्त है कि आबादी में ऊंची आय वाले 25 प्रतिशत लोग इसके दायरे में न रखे जाएं।
  • समीक्षा के अनुसार, दूसरी तरफ मौजूदा मध्यम वर्ग को मिलने वाली सब्सिडी तथा खाद्यान, पेट्रोलियम और उर्वरक सब्सिडी की लागत जीडीपी का करीब तीन प्रतिशत है।
  • गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। आजादी के समय यह जहां करीब 70 प्रतिशत थी, वह 2011-12 में (तेंदुलकर समिति) लगभग 22 प्रतिशत पर आ गई।
  • इसमें कहा गया है कि इसकी भारत में आवश्यकता है क्योंकि मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं में गलत आबंटन, चोरी और गरीबों के शामिल नहीं होने जैसी खामियां है।
  • समीक्षा में कहा गया है कि केंद्र सरकार अकेले 950 केंद्रीय और केंद्र प्रायोजित उप-योजनाओं को चला रही है, जिस पर जीडीपी का करीब पांच प्रतिशत खर्च हो रहा है।

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