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ट्राई चाहता है उल्‍लंघन करने वालों को जेल भेजने और जुर्माना लगाने का अधिकार, सरकार से की मांग

कॉल ड्रॉप पर लगाम के लिए भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने सरकार से उसे अधिक अधिकार दिए जाने की मांग की है।

Abhishek Shrivastava
Updated : June 08, 2016 21:04 IST
Call Drops: ट्राई चाहता है उल्‍लंघन करने वालों को जेल भेजने और जुर्माना लगाने का अधिकार, सरकार के सामने रखी मांग
Call Drops: ट्राई चाहता है उल्‍लंघन करने वालों को जेल भेजने और जुर्माना लगाने का अधिकार, सरकार के सामने रखी मांग

नई दिल्‍ली। कॉल ड्रॉप पर लगाम के लिए भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने सरकार से उसे अधिक अधिकार दिए जाने की मांग की है। नियामक ने सरकार से कानून में संशोधन कर उसे नियामकीय व्यवस्थाओं के उल्लंघन के मामले में मोबाइल ऑपरेटरों पर 10 करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाने तथा कंपनी के कार्यकारियों को दो साल तक की जेल की सजा दिलाने का अधिकार दिए जाने की अपील की है।

उच्चतम न्यायालय ने ट्राई के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें कॉल ड्रॉप के लिए ग्राहकों को मुआवजा दिए जाने का प्रावधान किया गया था। ट्राई ने दूरसंचार विभाग को ट्राई कानून, 1997 के विभिन्न प्रावधानों में संशोधन का सुझाव दिया है, जिससे क्षेत्र को एक प्रभावी नियामक मिल सके। दूरसंचार विभाग को भेजे पत्र में ट्राई ने कहा है कि यदि सेवाप्रदाता कानून या लाइसेंस के नियम और शर्तों के तहत किसी निर्देश, आदेश या नियमनों का उल्लंघन करता है तो उस पर 10 करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जाना चाहिए।

ट्राई ने प्रत्येक कॉल ड्रॉप पर उपभोक्ताओं को एक रुपए प्रति कॉल और एक दिन में अधिकतम तीन रुपए तक जुर्माना दिए जाने का आदेश दिया था। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने उसके इस आदेश को रद्द कर दिया था। नियामक ने कहा कि आदेश की व्यापक समीक्षा के बाद उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए अधिक स्पष्टता की जरूरत महसूस हुई है। नियामक ने ट्राई कानून, 1997 की धारा 29 में संशोधन का प्रस्ताव किया है। यह धारा उसके निर्देशों के उल्लंघन पर जुर्माना लगाने के बारे में है। फिलहाल ट्राई के पास किसी उल्लंघन पर दो लाख रुपए तक का जुर्माना लगाने का अधिकार है। यदि यह उल्लंघन जारी रहता है तो वह आगे और दो लाख रुपए का जुर्माना लगा सकता है। फिलहाल उपभोक्ता और टेलीकॉम ऑपरेटर के बीच विवाद उपभोक्ता अदालत में नहीं जाता, क्‍योंकि उच्चतम न्यायालय के 2009 के फैसले में उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत ऐसी किसी राहत पर रोक लगाई गई है।

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