नई दिल्ली। नीति आयोग के सदस्य और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के अध्यक्ष बिबेक देबराय का कहना है कि देश में रोजगार के बारे में कोई सटीक आंकड़ा नहीं है। इस स्थिति में सरकार कैसे इसका विस्तार करने की योजना बनाएगी और उसके परिणामों को किस प्रकार जांचा जाएगा, यह एक बड़ा सवाल है। सही आंकड़ों के अभाव में विपक्ष द्वारा सरकार पर रोजगार न दे पाने के आरोप भी कठघरे में खड़े नजर आते हैं।
पीएमईएसी की पहली बैठक बुधवार को प्रधानमंत्री के साथ हुई। इस बैठक के बाद देबराय ने कहा कि हमारे पास रोजगार को लेकर ठोस आंकड़ा नहीं है। देश में जो भी आंकड़े हैं, वह परिवारों के बीच किए गए सर्वे पर आधारित है और जो आंकड़े हैं भी वे पुराने हैं। भारत जैसे देश में उपक्रम आधारित आंकड़ा मुश्किल है।
फिलहाल जो रोजगार पर आंकड़े उपलब्ध हैं, वह समय पर नहीं आते और जो आंकड़े आते भी हैं, वह संगठित क्षेत्र तक सीमित होता है। असंगठित क्षेत्र में देश के कुल कार्यबल का करीब 90 प्रतिशत काम करता है, लेकिन उनको लेकर कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। इस संदर्भ में व्यापक आंकड़े राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय उपलब्ध कराता है, लेकिन वह समय पर नहीं आता और उसमें समय अंतराल होता है।
ऐसे में सरकार को सबसे पहले देश में रोजगार के आंकड़ों को एकत्रित करने और उनके आकलन की व्यवस्था पर जोर देना चाहिए, जिससे उसके मुताबिक योजनाएं बनाई जा सकें और उनको उसी अनुसार कार्यान्वित भी किया जा सके। आंकड़ों के अभाव में हमेशा इस बात का अज्ञान ही रहेगा कि किस क्षेत्र में कितने कुशल लोगों की आवश्यकता है या किस क्षेत्र में अधिशेष कामगार हैं और कौन सा क्षेत्र रोजगार के लिए उभर रहा है।