नई दिल्ली। टेलीकॉम कमीशन ऑफ इंडिया ने हालही में लंबे समय से लंबित पड़े मोबाइल वर्चुअल नेटवर्क ऑपरेटर्स (एमवीएनओ) से जुड़ी ट्राई (टेलीकॉम रेगूलैटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया) की सिफारिशों को अपनी मंजूरी दे दी है। जैसा की नाम से ही जाहिर है एमवीएनओ एक ऐसे प्रकार के नेटवर्क ऑपरेटर्स होंगे, जिनकी प्रकृति वर्चुअल होगी। इसका मतलब यह है कि उनके पास टेलीकॉम सर्विस प्रदान करने के लिए स्वयं का स्पेक्ट्रम नहीं होगा, लेकिन वह मौजूदा टेलीकॉम ऑपरेटर्स से थोक दाम पर वॉइस और डाटा सर्विसेस खरीदकर कस्टमर्स को उपलब्ध करवाएंगे। इससे कस्टमर्स और ऑपरेटर्स दोनों को फायदा होगा।
एमवीएनओ कैसे करेंगे काम
एमवीएनओ इनडायरेक्टली अपने स्वयं के ब्रांड नैम के तहत पार्टनर टेलीकॉम ऑपरेटर्स की सर्विसेस की बिक्री कस्टमर्स को करेंगे। टेलीकॉम ऑपरेटर्स अपनी सर्विसेस के लिए एमवीएनओ के जरिये नए कस्टमर्स को अपने साथ जोड़ पाएंगे, जबकि एमवीएनओ कस्टमर्स को हाई-वैल्यू सर्विसेस (विभिन्न पैकों का जोड़कर) उपलब्ध कराएंगे। एमवीएनओ न केवल टेलीकॉम कंपनियों के ऑपरेशनल खर्च में हाथ बंटाएंगे, बल्कि वह अपने ब्रांड नैम के तहत उनकी सर्विस की बिक्री के जरिये टेलीकॉम कंपनियों की मार्केटिंग और सेल्स कॉस्ट को भी कम करने में मदद करेंगे। इससे सर्विसेस की कीमत भी कम होगी।
एक से अधिक ऑपरेटर्स की सर्विसेस बेच सकेंगे एमवीएनओ
टेलीकॉम मिनिस्ट्री के सूत्रों के मुताबिक एमवीएनओ अपने पार्टनर टेलीकॉम ऑपरेटर की सभी टेलीकॉम सर्विसेस को उपलब्ध कराने में सक्षम होंगे। इतना ही नहीं एक एमवीएनओ एक से अधिक टेलीकॉम ऑपरेटर की सर्विस बेच सकेंगे। सूत्र ने बताया कि यह प्रस्ताव आगे की मंजूरी के लिए टेलीकॉम मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद के पास भेजा गया है। मंजूरी मिलने के बाद नए यूनीफाइड लाइसेंस जारी किए जाएंगे और कुछ ही हफ्तों में यह सर्विस शुरू हो जाएगी।
कितनी भी सर्विस बेचने की अनुमति
सूत्र के मुताबिक एमवीएनओ कितनी भी सर्विस को इंटीग्रेट कर उन्हें अपने सब्सक्राइर्ब्स को केवल सिंगल प्लान के तहत बेच सकेंगे। इसके अलावा वे इस तरह की सर्विस देने के लिए किसी भी तरह की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र होंगे।
रास्ते में हैं बाधाएं भी
इन सभी फायदों के बावजूद एमवीएनओ भारतीय बाजार में आसानी से सर्विस की बिक्री नहीं कर पाएंगे। इसमें मुख्य बाधा यह है कि एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया जैसी प्रमुख कंपनियों के पास खुद ही अपने स्पेक्ट्रम में पर्याप्त बैंडविथ नहीं है, इसलिए एमवीएनओ के साथ साझा करने में उन्हें परेशानी आएगी। इसके अलावा दूसरी बाधा यह है कि ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कोई मजबूत ब्रांड नैम की जरूरत होगी, जो आने वाली एमवीएनओ कंपनियों की मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन कॉस्ट को बढ़ा देगा। लेकिन एमवीएनओ के आने से कर्ज के बोझ से दबी सरकारी टेलीकॉम कंपनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल को जरूर फायदा होगा।