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दूरसंचार कंपनियों को बकाया चुकाने में राहत पहुंचाना न्यायालय की अवमानना होगी, JIO ने दूरसंचार मंत्री को लिखा पत्र

रिलायंस जियो ने बराबरी के अवसर सुनिश्चित करने की अपनी लड़ाई जारी रखते हुए दूरसंचार मंत्री रवि शंकर प्रसाद को पत्र लिखा है।

Written by: India TV Paisa Desk
Published on: November 03, 2019 16:03 IST
reliance jio- India TV Paisa

reliance jio

नयी दिल्ली। रिलायंस जियो ने बराबरी के अवसर सुनिश्चित करने की अपनी लड़ाई जारी रखते हुए दूरसंचार मंत्री रवि शंकर प्रसाद को पत्र लिखा है। कंपनी ने कहा कि वोडाफोन-आइडिया और एयरटेल को वैधानिक बकाया चुकाने में राहत देना उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लंघन होगा और इससे गडबड़ी करने वाली कंपनियों के मामले में गलत परंपरा की शुरुआत होगी। 

जियो ने कहा कि शीर्ष न्यायालय ने अपने 24 अक्टूबर के आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि दूरसंचार लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क जैसे शुल्कों पर भी वैधानिक शुल्क का भुगतान करना होगा। इस स्थिति में पिछले 14 साल के पुराने बकाये पर ब्याज और जुर्माने में छूट देना न्यायालय के निर्णय का उल्लंघन होगा। उच्चतम न्यायालय ने पिछले हफ्ते सरकार की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि दूरसंचार समूह में उसे अन्य स्रोत से प्राप्त आय को समायोजित सकल आय (एजीआर) में शामिल किया जाना चाहिए। एजीआर का एक हिस्सा लाइसेंस और स्पेक्ट्रम शुल्क के रूप में सरकारी खजाने में जाता है। 

दूरसंचार कंपनियों के संगठन सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने प्रसाद को दूसरा पत्र लिखकर कहा था कि यदि पूरा बकाया माफ करना संभव न हो तब हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि ब्याज , जुर्माना व जुर्माने पर ब्याज को माफ किया जाये। इन कंपनियों पर इस मद में पिछला कुल 1.42 लाख करोड़ रुपए का बकाया है। जियो ने कहा कि इन दूरसंचार कंपनियों के पास बकाया चुकाने की पर्याप्त वित्तीय क्षमता है। 

जियो ने पत्र में कहा, 'सीओएआई अपने दो चुनिंदा सदस्यों को सरकार से वित्तीय राहत दिलाने में मदद करने के लिए वास्तव में उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ जाने की कोशिश कर रहा है।' उसने कहा, 'न्यायालय ने दूरसंचार सेवाप्रदाताओं की ओर से दिए गए सभी बेबुनियादी तर्कों को निष्पक्ष और स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है और कंपनियों को अपना बकाया चुकाने के लिए तीन महीने का पर्याप्त समय भी दिया है।' जियो ने कहा, 'मामले को देखते हुए हमारा मानना है कि सरकार के पास न्यायालय के फैसले के खिलाफ जाने और सीओएआई की ओर से मांगी गई राहत देने का विकल्प नहीं है।' ऐसा करने से क्षेत्र में एक गलत परंपरा की भी शुरुआत होगी।

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