नई दिल्ली। अफगानिस्तान पर तालिबान लड़ाकों का कब्जा होने के बाद अब यह माना जा रहा है कि अफगानिस्तान की जमीन के नीचे दबे खरबों डॉलर के महत्वपूर्ण खनिजों पर भी तालिबानियों का कब्जा होगा। चीन की नजर अब वहां धरती पर मौजूद खरबों डॉलर मूल्य की दुर्लभ धातुओं पर है। सीएनबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में अफगान दूतावास के पूर्व राजनयिक अहमद शाह कटवाजई के हवाले से कहा कि अफगानिस्तान में मौजूद दुर्लभ धातुओं की कीमत 2020 में एक हजार अरब डॉलर से लेकर तीन हजार अरब डॉलर के बीच लगाई गई थी। इन कीमतों धातुओं का इस्तेमाल हाई-टेक मिसाइल की प्रणाली जैसी उन्नत तकनीकों में प्रमुख तौर पर किया जाता है।
चीन ने बुधवार कहा था कि वह देश में सरकार बनने के बाद अफगानिस्तान में तालिबान को राजनयिक मान्यता देने पर फैसला करेगा। रिपोर्ट के अनुसार बड़ी मुश्किल से मिलने वाले इन धातुओं का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों के लिए दोबारा चार्ज की जाने वाली बैटरी, आधुनिक सिरामिक के बर्तन, कम्प्यूटर, डीवीडी प्लेयर, टरबाइन, वाहनों और तेल रिफाइनरियों में उत्प्रेरक, टीवी, लेजर, फाइबर ऑप्टिक्स, सुपरकंडक्टर्स और ग्लास पॉलिशिंग में किया जाता है।
सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्ट्डीज (सीएसआईएस) की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन दुनिया की 85 प्रतिशत से अधिक दुर्लभ पृथ्वी की धातुओं की आपूर्ति करता है। चीन सुरमा (एंटीमनी) और बराइट जैसी दुर्लभ धातुओं और खनिजों की भी आपूर्ति करता है, जो वैश्विक आपूर्ति के लिए मौजूद लगभग दो-तिहाई हिस्सा है। चीन ने 2019 में अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के दौरान धातु निर्यात को नियंत्रण में करने की धमकी दी थी। चीन के इस कदम से अमेरिकी उच्च तकनीक उद्योग के लिए कच्चे माल की गंभीर कमी हो सकती है। उभरते बाजार ऋण एलायंसबर्नस्टीन की निदेशक शमिला खान का मानना है कि तालिबान ऐसे संसाधनों के साथ सामने आए हैं, जो दुनिया के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकते है। अफगानिस्तान में मौजूद खनिजों का दुरुपयोग किया जा सकता है।
अफगानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है। 2010 में अमेरिकी सैन्य अधिकारियों और भू-वैज्ञानिकों ने इस बात का खुलासा किया था कि देश में 1 लाख करोड़ डॉलर मूल्य के खनिज पदार्थ मौजूद हैं। पूरे क्षेत्र में आयरन, कॉपर और गोल्ड की खदानें हैं। अफगानिस्तान में दुनिया का सबसे बड़ा लीथियम भंडार भी मौजूद है।
सुरक्षा चिंता, इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और भयंकर सूखे की वजह से यहां खनन गतिविधियां जोर नहीं पकड़ पाई हैं। लेकिन तालिबान के नियंत्रण के बाद स्थितियां तेजी से बदल सकती हैं। क्योंकि चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी मुल्कों की नजर इसी खजाने पर है और वे इसमें अपनी अहम हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए तालिबान की मदद कर रहे हैं।
कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए इलेक्ट्रिक कार और अन्य स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी के लिए लीथियम और कोबाल्ट के साथ ही साथ कम मात्रा में पाए जाने वाले खनिज जैसे नियोडायमिअम की मांग पूरी दुनिया में बहुत अधिक है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने मई में कहा था कि लीथियम, कॉपर, निकल, कोबाल्ट और अन्य खनिज पदार्थों की आपूर्ति में वैश्विक स्तर पर तेजी लानी होगी अन्यथा दुनिया पर्यावरण संकट से निपटने के अपने प्रयासों में विफल हो जाएगी। वर्तमान में चीन, कोंगो और ऑस्ट्रेलिया के पास 75 प्रतिशत लीथियम, कोबाल्ट और अन्य खनिजों पर नियंत्रण है।
यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के मीरजाद ने साइंस मैग्जीन को 2010 में बताया था कि यदि अफगानिस्तान अपने खनिज संसाधनों को विकसित करता है तो यह एक दशक के भीतर क्षेत्र में सबसे धनी देशों में से एक बन सकता है। स्कूनोवर का कहना है कि इस बात की संभावना है कि तालिबान सरकार अफगानिस्तान में खनन क्षेत्र के विकास पर ज्यादा ध्यान दे, क्योंकि उसे देश चलाने के लिए धन की आवश्यकता होगी।
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